Thursday, February 17, 2011

मजबूर तो देश हो गया है, प्रधानमंत्रीजी !

जब देश का रहनुमा, देश का प्रधानमंत्री कहने लगे कि,
मैं मजबूर हूँ तो फिर ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है
कि, कहीं पर कुछ नहीं बहुत कुछ गलत हो रहा है,
प्रधानमंत्रीजी से मै एक बात कहना चाहता हूँ, कि ये आपकी
गलती नहीं है, सिर्फ आप ही नहीं ये देश भी मजबूर हो गया है,
भ्रष्ट नेताओं को झेलने के लिए, ये मजबूरी सिर्फ आपकी नहीं,
हमारी भी है कि हम कुछ नहीं कर सकते सिवाय तमासा देखने के,
इस से तो अच्छा  होता कि आप ये कहते कि ये देखो मैं इस्तीफा दे
रहा हूँ क्योंकि मैं देश को उचित दिशा नहीं दे सका और मैं अब इस
लायक नहीं कि देश कि बागडोर संभाल सकूँ,
पर अफ़सोस कि देश के सामने गठबंधन कि मजबूरी बताने वाले आप
देश के साठ पर्तिसत युवाओं के साथ धोका कर बैठे,
आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले ही जब सोनिया गाँधी ने कुर्सी छोड़ी,
थी तो मैंने अपने मित्र से कहा था कि ये कुर्सी शायद सरदारजी को
मिल जाये, और मिली तो मैं बहुत खुश भी हुआ था, कि देश को इमानदार
आदमी मिला है, पर आपकी ईमानदारी इस देश पर भरी पड़ गयी, जी
जरूरत देश को मजबूरी गिनने कि नहीं पर कुछ कर दिखाने की है,
हमे अभी भी आपसे काफी उमीदें है, जागो प्रधानमंत्रीजी जागो.
मनोज चारण



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