Wednesday, April 20, 2016

नमस्कार सभी को !

इस देश में हो क्या रहा है ? कोई धणी-धोरी नहीं है देश का। सब सत्ता के मद में और सत्ता सुंदरी के लिए यूं परेशान हैं कि जाने बिना सत्ता के इस दुनिया में कुछ नहीं है। सही भी है सत्ता के बिना है भी क्या ? पर कल तक जो चाल-चरित्र-चेहरा की राजनीति करते थे आज उन्हे अचानक से उन लोगों से कोई मतलब नहीं रहा जिन्होने इनके आज के लिया अपना कल बर्बाद कर दिया था। कल तक जो नारे लगाते थे कि, "जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है।" 
आज अचानक से कश्मीर में ऐसा क्या हो गया कि भारत सरकार को कि पुलवामा में सेना के बंकर हटाने को राजी हो गयी। बात ये नहीं है कि इससे क्या फर्क पड़ेगा, बात  ये है कि आखिर इस कदम से सेना के हौसले पर क्या फर्क पड़ेगा ? वो सेना जो इस देश में हनुमान से कम नहीं है, चाहे भूकंप हो, चाहे बाढ़, चाहे किसी बच्चे का बोरवेल में फंसना या फिर कहीं किसी समुदाय का आरक्षण आंदोलन हो। सेना ही इस देश में संकटमोचक बन कर आती है सामने। मुझे अखबारों के वो चित्र और लेख और समाचार अच्छी तरह से याद है कि, किस तरह से सेना ने लातूर और भुज के भूकंपो से छै माह के बच्चों को सेना ने जिंदा निकाला था, किस तरह से सुनामी से सेना लड़ी थी, किस तरह से उत्तराखंड से लोगों को निकाला था, किस तरह से हरियाणा को बचाया था। 
जब हमारी सेना जो कि दुनिया की शायद एक मात्र सेना होगी जो कि सामाजिक और प्राकृतिक आपदाओं में देश को बचाती है। ये सेना सिर्फ युद्ध ही नहीं करती बल्कि अपने मनुष्य होने का भी एहसास कराती है। कश्मीर में सेना के द्वारा मारे गए आतंकवादी सबको दिखाई देते है, पर बर्फ में दब कर कितने हनुम्त्थपा शहीद होते है वो किसी को भी दिखाई नहीं देते। अभी जो सेना पर पिछले दिनों आरोप लगाया गया है वो निहायत ही शर्मनाक है, जब वो बच्ची कह रही है कि उसके साथ घटना को अंजाम देने वाले सैनिक नहीं बल्कि वहाँ के स्थानीय गुंडे थे, तो फिर इस पर राजनीति की कहाँ जरूरत है। राजनीति करने वाले लोग तो कल तक इशरत जहां को भी निर्दोष बता रहे थे जबकि ये प्रमाणित हो चुका है कि, वो एक आतंकवादी थी। कहने का मतलब ये है कि इस देश को सबसे बड़ा खतरा चीन या पाकिस्तान से नहीं बल्कि हमारे ही राजनेताओं से है, उन राजनेताओं से जो सिर्फ विरोध और स्वार्थ की राजनीति करते हैं। 
कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाए रखने के प्रयास में शहीद हो चुके सैनिको, इस कश्मीर के लिए जिन सुहागनों ने अपना सुहाग लुटाया है उन भारतीय वीरांगनाओं, जिन माँओं ने अपने लालों को सीमा पर सिर्फ इसलिए बलिदान होने के लिए भेज दिया कि, "तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें ना रहें।" उन माँओं के दूध के लिए मैं भारत सरकार के इस बंकर हटाने वाले फैसले का विरोध करता हूँ। 
माफ करेंगे मुझे इस देश के कर्णधार कि मैं कड़वी बात कह रहा हूँ पर सच ये है कि पहले अपने बेटों को सेना में भेजो और फिर ये कदम उठाओ तो जाने कि किसके गुर्दे ज्यादा मजबूत है देश की जनता के या कि नेताओं के। 

शेष फिर कभी ...................................................। 

मनोज चारण (गाडण) "कुमार"
मो. 9414582964