Thursday, April 21, 2011

अब तो मान गए न कि, बेरोजगारों से रोजगार कमाते है, और धडल्ले से सरकार चलाते है !

जय श्रीअम्बे  !

         हाईकोर्ट ने आखिर टेट पर रोक लगा ही दी, फिर सरकार ने क्या सोच के इस परीक्षा के लिए फार्म भरवाए थे | आखिर विद्यार्थियों से ६०० रूपये फार्म के, १०० रूपये ऑनलाइन के, और लगभग १००० रूपये अतिरिक्त खर्च होने के बाद विद्यार्थियों के हाथ आया है तो बस अफ़सोस, कि अब क्या करेंगे ?
            सरकार के पास न तो कोई विजन है, और न ही कोई सोच, आखिर क्या चाहती है, ये सरकार | हमारे तो एक बात समझ में आठ है जो कभी बीकानेर के कवी ए.वी.कमल ने कही थी,

  "हमने पूछा मंत्रीजी से, कि आप  हर साल घाटे का बजट बताते हो,
   तो फिर ये सरकार कैसे चलाते हो |
  मंत्रीजी बोले, कि कोम्पेटटिव एक्सामीनेसन खूब करते है,
  १० कि जगह १०० को बुलाते है, इस प्रकार,
  बेरोजगारों से रोजगार कमाते है, और धड्ले से सरकार चलाते है |

          तो बात तो ये है, कि गहलोत सरकार तो बेरोजगारों से ही अपनी दाल रोटी चलाना चाहती है, तभी तो बजट में कहा था कि दाल रोटी खाओ हरी के गुण गाओ | पर गहलोत को पता नहीं कि मरे बैल कि चाम से लोह भस्म हो जाता है और आज का बेरोजगार किसी मरे बैल से कम नहीं है, जिसकी कमर झुकी हुई है, चेहरे पर मुर्दनी छाई  है, और हालत लंगड़े आम कि तरह हो गयी  है, जिसे जब देखो सब चूसने में और निचोने में लगे है | लेकिन आखिर कब तक निचोड़ोगे इसे कभी तो इसमें से कठोर गुठली निकल ही आएगी और जिस दीन गुठली निकली उस दिन न तो

                                           "तख़्त रहेगा और न ताज रहेगा | "

शेष कुशल.
मनोज चारण.


Tuesday, April 19, 2011

अफ़सोस ! ये लाइन कब ख़त्म होगी ?

सादर जय श्रीअम्बे  !

           रामनवमी कि सुभकामनाये सभी को | पिछले दिनों में राजस्थान के सभी विद्यार्थियों को अनेक लाइनों  में लगना पड़ा है,  क्योंकि एक तरफ तो पटवारी कि भर्ती थी और दूसरी तरफ टेट कि परीक्षा के फार्म भी भरे जा रहे थे |  और तो और लाइनों का तो ये आलम था की जब कोई बंद लेने से अपना काम निकल लेता था तो फिर ऐसे महसूस करता है की जैसे उसने टाइगर हिल पर फ़तेह कर ली है |
           और लाइन को तो क्या कहे कि, क्या हालत है ? पहले दुकान पर फार्म लेने की लाइन, फिर पटवारी के पास लाइन, फिर नोटेरी के पास लाइन, फिर तहसील में लाइन, फिर पोस्टऑफिस  में लाइन, फिर बैंक में लाइन, फिर प्रेवश पत्र की लाइन, फिर परीक्षा की लाइन, फिर भी बाकि बचे तो बेरोजगारी की लाइन | आखिर इस देश में लाइन कभी ख़त्म होगी या नहीं, शायद देश में ये लाइन कभी ख़त्म नहीं होगी |
           हो क्या रहा है इस देश में ?  सोचने की बात है, की जब राजस्थान में पीटीइटी करवाई जा रही है, जब बीएड करवाई जा रही है, फिर इस नई पात्रता परीक्षा का क्या ओचित्य  है ? आखिर इस राज्य के विद्यार्थिओ ने कोई अपराध कर दिया है क्या ? जो अशोक गहलोत इनके हाथ धो कर पीछे पड़े है | जिस दिन इस राज्य का आजादी के बाद का इतिहास लिखा जायेगा. उस दिन अशोक गहलोत का  नाम सबसे मूर्ख और सबसे हठधर्मी शासक के रूप में लिखा जायेगा, न सिर्फ लिखा जायेगा, बल्कि इनके नाम सबसे बड़ी गालियाँ भी लिखी जाएगी | मुझे तो लगता है की जैसे हमे पिछले जन्म में कोई पाप किया था, जो अशोक गहलोत जैसे शासक से पाला पड़ा है,  भगवान बचाए इन जैसे पापियों से.

शेष कुशल.

मनोज चारण.

Saturday, April 9, 2011

मान गए कि, बूढी हड्डियों में जान बाकि है !

जय श्रीअम्बे  !
                    नवरात्री कि ढेर साडी सुभकामनाये !
                     मान गए अन्ना हजारे  का  जिगर , वास्तव  में लगा कि फिर से इस देश में बापू लौट आये है, कल जब टीवी पर देख रहा था और पत्रकार अपनी अटकलें  लगा रहे थे भिड़ा रहे थे, तब एक बार तो लगा कि अन्ना सायद कहीं पर झुक न जाये और माफ़ करना जी मई जरा भगतसिंह टाइप का आदमी हूँ जो ये सोचता ही कि यदि गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन  चोरीचोरा के कारण रोका नहीं होता तो शायद भारत में  आजादी २५ साल पहले आ जाती और शायद हमे भगत, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रसेखर, सुभाषचन्द्र  जैसे नेताओं से महरूम नहीं होना पड़ता. पर वह रे गाँधी के सचे भक्त, तुने कमाल कर दिया और सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि बस झुकना ही पड़ा.
                 मान गए कि बूढी हड्डियों में जान अभी बाकि है, और ना सिर्फ बाकि है बल्कि इस देश के नोजवानो  से कुछ जयादा ही है, हमे भी अब सोचना पड़ेगा कि जब ७८ साल का एक बुढा  इस   पूरी वयवस्था के खिलाफ  खड़ा हो सकता है, एक महिला किरण उसके साथ कड़ी हो सकती है, एक साधारण सा केजड़ीवाल खड़ा हो सकता है, एक स्वामी खड़ा हो सकता है, तो फिर हम क्यों नहीं इस करप्सन के खिलाफ खड़े होते है, हमे ये करना ही होगा वरना कल आने वाली पीढ़ी पूछेगी कि जब एक बुढा तुम्हारे लिए लड़ रहा था तब तुम कहाँ पर थे ?  आइपीएल  के मैदान में या, फिर कहीं और ?
              इसलिए मेरे साथियों खड़े हो जाओ इस वयवस्था के खिलाफ और झंडा बुलंद करो इन्कलाब का, और जोर से कहो "इन्कलाब जिंदाबाद"
शेष  कुसल |
मनोज चारण.
                माँ करणी (चूहों वाली देवी) कि फोटो देशनोक मंदिर, बीकानेर जिला, राजस्थान.

Monday, April 4, 2011

सच ही कहा है झूठे का मुंह काला !

जय श्री अंबे ! 
        सभी को चैत्र के नवरात्री की ढेरों सुभकामनाएँ ! भारत क्रिकेट का नया सरताज बन गया है, और चारो तरफ खुसी का मंजर है, जिसे देखो गुण गा रहा है, धोनी और उसकी सेना का. पर लंका में क्या हो रहा है, कल अंग्रेजो के पूर्व कप्तान ने संगाकारा को दुनिया का बईमान बता दिया और क्यों नहीं बताये आखिर उसने काम ही ऐसा ही किया था. 
        भाई किसी ने सुना हो या न हो पर आपको तो पता ही था कि आपने क्या कहा था. आखिर इतिहास में नाम लिखाने का मोका जिन्दगी में बार-बार तो आता नहीं है और फिर ये तो क्रिकेट है, जिसमे कुछ ही दिनों पहले तो इसी वर्ल्डकप के ही एक मैच में सचिन को एम्पाएर ने आउट नहीं दिया था, पर वाह रे सचिन अपने आप ही मैदान छोड़ दिया. इसी तरह से एक मैच में गिलक्रिस्ट ने भी अपने आप मैदान छोड़ दिया था. इसे कहते है, इतिहास में नाम लिखने का मोका. पर भाई संगाकारा ने ये मोका गवा दिया. 
        अब दुनिया में सभी तो ईमानदार नहीं होते ना. फिर संगाकारा तो रावण की ओलाद है, जिनके खून में ही झूठ और फरेब सामिल है, पहले हमारी भोली-भाली सीतामाता को ठग के ले गया, पर हमारा धोनी तो पूरा हनुमान निकला जिसने आग लगा दी संगाकारा की चीटिंग को. वाह रे मेरे हनुमानो नहले पर दहला मार ही दिया. इसे कहते है "झूठे का मुंह काला."

शेष कुशल.
मनोज चारण.

Sunday, April 3, 2011

सितारों के आगे जहाँ और भी है !

              २८ सालों का सुखा  आखिर समाप्त हुआ है और धोनी और उसके धुरंधरों ने कपिल पाज़ी के कंधो का बोझ कम किया है. अकेले ही बेचारे १९८३ का वर्ल्डकप ढो रहे थे. खैर भारतवासियों को खुशियाँ मनाने का पूरा हक़ है, ऑफ़ क्यों नहीं होना चाहिए आखिर हमारे हनुमानों ने एक बार फिर लंका फतह की है. मेरे देश के इन                             नोजवानो को ढेरों बधाई. सचिन के लिए तो ये और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है की वो इस टीम का सदस्य है, जिसने वर्ल्डकप जीता है, ये एक ही तो कप था जिसमे सचिन ने पेप्सी नहीं पी थी, अब इसमें जी भर के सैम्पेन पी लेना सचिनजी ! 
               युवराज ने तो इस पूरे वर्ल्डकप में कमल कर दिया और कल उसका एक नया रूप देख कर मजा आ गया, पता ही नहीं था की इस रूखे चेहरे वाले इस कठोर आदमी में एक प्यारा दिल भी है और ऐसा दिल जो      बाग-बाग  ही नहीं हो रहा था बल्कि रो भी रहा था. भज्जी जैसे आदमी के आंसू देखे तो लगा की चलो अभी भारतीय अपनी जमीन पर ही है, जमीन को भूले नहीं है. पूरे देश को नाज है इन चंद नोजवानो पर जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझी है, हर बार. 
               मैच सुरु होने के बाद तक इस बार मैंने धोनी को जी भर के गाली दी थी पर अब जी भर के दाद भी दे रहा हूँ. गाली इसलिए की उसने पूरे टूर्नामेंट में एक बार भी अपना असली खेल नहीं दिखाया था, पर सोरी बोस आपकी स्पेशल पारी एक स्पेशल मैच के लिए बाकि थी तुमने देश के लिए वो पारी खेल कर सरे गिले दूर कर दिए मेरे भाई. गंभीर ने तो वो क्लास दिखाई है जैसी द्रविड़ में  थी. सभी को मेरा सलाम. 
                 पर एक बात और है जो सबसे बड़ी है, ये तो क्रिकेट में हम विजेता बने है, बैडमिन्टन में बने है, कब्बडी में बने है, बोक्सिंग में बने है, सूटिंग में बने है, पर असली हीरो हम तब बनेगे जब हम होकी, फूटबाल, तैराकी, एथेलिटिक जैसे सभी खेलों में आगे होंगे और ओलोंपिक में सबसे आगे होंगे. जैसे इस विजय पर सारा देश नचा है, अफ़सोस कि सारा देश अन्य खेलों में जीतने पर ऐसे नहीं नाचता है, ये गलत बात है. मैं ध्यान खींचना चाहता हूँ सभी का चाहे वो प्रधानमंत्री हो या कोई और देश कि जनता हो या फिर खुद क्रिक्केटर कि इस देश में कुछ खिलाडियों को तो पैसो में डुबोया जा रहा है, और कुछ को अपनी तनख्वा के लिए भी भूख हड़ताल करनी पड़ती है. ये नहीं होना चाहिए, ये बुरी बात है. 
                     इसलिए कह रहा हूँ कि 
                                                       "सितारों    के   आगे   जहाँ   और   भी     है,
                                                        अभी तो जमी जीती है, आसमा और भी है."

देश को इस सुभ मोके पर ढेरों बधाई, जय हिंद.
शेष कुशल.
मनोज चारण.