Monday, December 25, 2017

देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण

बात जरा हट के कहूंगा

देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण

आज जब सम्पूर्ण देश मे देशभक्ति के नए नए नारे गढ़े जा रहें है, जब नई नई परिभाषाएं दी जा रही है, जब हमारे समक्ष देशभक्ति और राष्ट्रनिर्माण की बहुत सी बातें की जा रही है, तब इस विकट परीस्थिति में हम युवाओं को सोचना होगा कि देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण असल मे है क्या ?

हम जब इन दोनों ही मुद्दों पर बात करते हैं तो ये एक दूसरे के पूरक नजर आते है। हम जब तक देशभक्त नहीं होंगे तब तक देश के भले के लिए कोई काम नहीं कर सकेंगे और ज्यों ही हम देश हित मे कोई काम करेंगे हम देशभक्ति की तरफ पहला कदम बढ़ा देंगे। जरूरी नही कि हम खुद को देशभक्त साबित करने के लिए सेना में भर्ती हों, पुलिस ही बने या देश के लिए मरना ही देशभक्ति की कसौटी नहीं है। यदि हम एक विद्यार्थी हैं और अपनी क्लास पूरी अटेंड करते हैं, होमवर्क पूरा करते हैं, विद्यालय में नियमित उपस्थित रहते हैं तो हम देशभक्त कहलाने का हक रखते हैं। यदि हम ट्रेन में बिना टिकट यात्रा नहीं करते, यदि हम व्यर्थ बहते पानी की रोकने के लिए टूंटी बन्द कर देते हैं तो हम देशभक्त भी हैं और राष्ट्र निर्माण में हमारा योगदान भी होता है। हम बिजली पैदा तो नहीं कर सकते लेकिन बिजली बचा तो सकते हैं लेकिन हम अपने स्कूलों में, कार्यालयों में कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं देते कि, पंखा च् रहा है तो उसे बन्द करें।  हम यह काम चपरासी पर छोड़ देते हैं।  हम रोज कुछ बिजली बचा कर देश का बड़ा हित तो कर ही सकते हैं। 

हमें समझना होगा कि देशभक्ति क्या है ? यदि हम हमारे हर जन्मदिन पर एक पेड़ लगाए तो जरा कल्पना करिए मन में की हमारा देश एक ही दिन में दुनिया का सबसे हरा भरा देश हो जाएगा और फिर उन पेड़ों की ऑक्सीजन से वातावरण प्रदूषण मुक्त हो जाएगा और फिर वर्षा की झड़ी लगेगी जिससे फसलें पैदा होगी, जिससे बिजली पैदा होगी, उत्पादन बढ़ेगा। ये सब हमारे सिर्फ एक पेड़ लगाने से होने लगता है तो बताइए कि क्या पेड़ लगाना राष्ट्र निर्माण नहीं है ? क्यों हम किसी सरकारी अभियान के मुखापेक्षी बने रहते हैं। हमें ये अपने लिए, अपनी भावी पीढ़ी के लिए ये करना चाहिए, करना होगा, वरना हमें तो हमारे पूर्वज जल, जंगल और उर्वर जमीन सौंपी थी पर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या सौंपेंगे। यदि ये सब होता है तो फिर इसे हम देशभक्ति क्यों नहीं कह सकते।

हमे सिखाया गया है कि जब राष्ट्रगान बजे तो सावधान मुद्रा में खड़ा हो जाना चाहिए, राष्ट्र ध्वज का सम्मान किया जाना चाहिए। ये सब देशभक्ति नहीं है बल्कि देशभक्ति के प्रतीक चिन्ह है जो हमे बताये गए हैं, दरअसल इन चिन्हों के पीछे मेरे ख्याल में बड़े गहरे भाव छिपे हैं। राष्ट्रगान के वक्त खड़ा होना क्यों जरूरी है ? क्योंकि उस वक्त राष्ट्र आपसे बात कर रहा होता है कि इस गान में जो है वह राष्ट्र हूँ मैं और जब मुझे तेरी जरूरत पड़े उस वक्त तूं मुस्तैदी से, सावधान और चौकस खड़े मिलना मुझे। राष्ट्रध्वज को लहराने के वक्त खड़ा होना ये है कि, जब राष्ट्र को जरूरत होगी हम सावधानीपूर्वक राष्ट्रहित में तत्पर खड़े मिलेंगे। राष्ट्र को हमे पुकारना नहीं पड़े, हम स्वयं ही अपनी जिम्मेदारी समझें, क्योंकि

जब जब देश पुकारेगा हम सीना ताने आएंगे।
बलिदानी बेटे हैं माँ के, बासंती चोला गाएंगे।।

यदि हम हमारे कर्तव्यों का पालन सही ढंग से करते हैं तो हम देश के निर्माण में अपना योगदान देते हैं। देश एक महान मशीन है जिसमें 125 करोड़ अलग अलग प्रकार के छोटे बड़े कलपुर्जों के रूप में हम सब लगे हुए हैं। अब यदि हम कल्पना करें कि इस मशीन का हर कल पुर्जा अपनी जगह का काम ठीक ढंग से कर रहा है तो निश्चित ही देश का निर्माण अबाध गति से हो रहा है। लेकिन यदि किसी भी पुर्जे में दिक्कत है तो फिर राष्ट्र रूपी मशीन में भी कोई न कोई दिक्कत तो जरूर पैदा होगी ही। हमें उन दिक्कतों को समझना होगा, उन्हें दूर करना होगा।

देशभक्ति का प्रमाण नारे लगाने से नहीं मिलता, देशभक्ति की बातें करने मात्र से नहीं मिलता, क्योंकि बाते तो बहुत लोग करते है, लेकिन सच ये भी है कि,

सुन के किसी के शहीद होने की खबर देशभक्ति से भर लिए हम।
जब बारी आई हमारी तो पीछे खिसक लिए हम।।

चुनौतियों का सामना करने के वक्त भागना देशभक्ति नहीं होता। अब वो चुनौती परीक्षा हो सकती है, अकाल भी, चुनाव भी और सेना का युद्ध भी। सैनिक यदि युद्ध करने में देश भक्ति दिखाता है तो चुनावों में ड्यूटी करने वाला अध्यापक भी देशभक्ति का असली हीरो होता है और उसी समय अपने खेत मे भरी दुपहरी हल चलाने वाला किसान और किसी मिल में काम करने वाला मजदूर भी देशभक्त ही होता है और परीक्षा हॉल में बैठा आप और मेरे जैसा विद्यार्थी भी देशभक्त ही होता है। 

देशभक्ति और राष्ट्रनिर्माण को अलग करके नहीं देखा जा सकता। यदि भगतसिंह देशभक्त थे तो गांधीजी भी थे, यदि इस देश के निर्माण में जमशेदजी टाटा, घनश्यामजी बिड़ला का योगदान है तो मेरे गांव-शहर के उस अज्ञात मजदूर का भी है जिसका नाम तक मैं नहीं जानता। यदि आज के प्रधानमंत्री देश का निर्माण कर रहे हैं तो यकीन मानिए कि आप भी इस देश के निर्माण में अपना योगदान दे ही रहे हैं। इसलिए हमे ये समझना होगा कि बिना राष्ट्र निर्माण हम देशभक्त नहीं हो सकते और देशभक्ति के बिना, राष्ट्र से प्रेम किये बिना हम देश का निर्माण भी नहीं कर सकते।

अंत में अपनी इन दो पंक्तियों से अपनी बात को विराम दूंगा कि,

भाषा, जणनी, जलमभोम, सैंसु मोटी चीज।
तीनूं सींचै जीव नै, जीव इंणा नै सींच।
जीव इंणा नै सींच, बावळा मति करै संकोच।
मातभोम री वंदना, सैंसु पैली सोच।।

- मनोज चारण "कुमार"