Monday, June 6, 2011

क्या आजादी यही होती है ?

 जय श्रीअम्बे !
                   
                      मेरे मन में पिछले कुछ दिनों से एक सवाल  बार-बार उठता रहा है, कि क्या सच में हम लोग आजाद भारत में जी रहे है ? क्या सच में भगतसिंह, आजाद और गाँधी ने इसी आजादी के सपने देखे थे ? क्या हमारे क्रांतिकारी सही नहीं थे जो सोचते थे कि गोरे साहब तो चले जायेंगे पर उनकी जगह भूरे और काले साहब आ जायेंगे पर नीतिया वही रहेगी | 
              जब मै इन सभी बातो पर ध्यान देता हूँ तो उलझन होती है कि क्यों मै इस देश में पैदा हो गया ? कम से कम किसी पाकिस्तान जैसे देश में पैदा होता तो ये तो कह सकता था कि मेरे देश का ये ही धर्म है | पर नहीं हम तो चोर की वो माँ है जो घड़े में मुह छुपा के रोटी है | 
               कल जो देश में हुआ और आगे जो होने वाला है, उसके लिए और कोई नहीं बल्कि पिछले ६० वर्षो से देश को जोंक की तरह चूस रही कांग्रेस जिमेदार है | एक बाहर से आई हुई ओरत को यहाँ के लोगो से क्या प्यार हो सकेगा ? क्या महमूद गजनी को हुआ था ? क्या चंगेज खान को हुआ था ? क्या सिकन्दर को हुआ था ? क्या मोहम्मद कासिम को हुआ था ? नहीं तो फिर इटली से स्नेह की उम्मीद रखना बेमानी है | 
              बाबा रामदेव ने क्या गलत कहा है, की इस देश का धन देश में आना चाहिए, क्यों नहीं उन लोगो के नाम खोले जाते जिनके खाते विदेशों में है ? क्या नाम खोलने से डर लगता है,  कि कहीं अपना ही नाम ना खुल जाये ? सायद यही बात है, तभी तो सब डर रहे है नाम लेने में नाम बताने में | 
               जहाँ तक बात राजनीती कि है, तो मुझे लालू और दिग्विजय से ये पूछना है कि क्या उनको भगवान ने राजनीती के लिए अपना दूत बना कर भेजा था जो अब बाबा को नसीहत देने लगे है ? अरे जिनको रोटी और गाय के चारे में अंतर मालूम नहीं वो इस देश कि जनता के सामने नसीहत देने लगे है | पर ये सच है कि जब जंगल  में सिंह नहीं होता है तो गीदड़ो को कबड्डी खेले का और उधम मचाने का मोका मिल जाता है | लालू को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि जनता ने उसे धरती  पर तो ला दिया है अब रसातल में भेजने कि तयारी है | और दिग्विजय किस मुह से बोलते है, उन्हें पता ही नहीं कि स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि "जिस व्यक्ति ने गेरुआ धारण कर लिया हो और जो मांग के खता है, दुनिया को उसका आदर करना चाहिए|" पर नहीं दिग्गी के लिए तो एक आतंकवादी ओसमा तो ओसमाजी हो जाते है और एक सन्यासी ठग | आखिर व्यक्ति का चरित्र उसकी भाषा से ही तो नजर आता है और भाषा व्यक्ति के संस्कार पर निर्भर करती है, सायद दिग्गी को अच्छे संस्कार नहीं मिले है | 
                 सब बाबा से सवाल पूछते है कि उनके पास ११०० करोड़ कि सम्पति कहाँ से आई ? एक उद्धरण देता हूँ मेरे शहर में जब बाबा आये थे तब मै भी उनके साथ था, उस दिन के योग शिविर में मेरे शहर में दो आदमी पतंजली योगपीठ के संस्थापक सदस्य बने थे, और उसकी फीस थी ५००००० रुपए | बाबा ने वो ५००००० रुपए कहीं पर किसी सट्टे में नहीं लगाये, ना ही किसी रंडी को नचाने में लगाये, ना ही हवाला से विदेश भिजवाए, बल्कि उन्होंने तो इस पैसे से देश को एक विश्वस्तरीय विश्वविध्यालय दिया है | ये है बाबा के ११०० करोड़ का सच जो इस देश के आम जन को भी पता है |
                 पर क्या लोगो को पता है कि देश में ए.राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी ने जो पैसे खाए है, वो कहाँ पर है ? क्या लोगों को पता है कि उन्होंने वो पैसे किस बैंक में और किसके खाते में डाले है ? क्या ये लोग किसी अंतररास्ट्रीय गिरोह के सदस्य बन गए है ? क्या ये किसी आंतकवादी संगठन के लिए तो काम नहीं कर रहे है ? इन सब बातो पर भी सवाल उठने चाहिए और मैंने उठाये है |
                 क्या दिग्गी राजा को और लालू को पता है कि कस्साब पर आज तक इस देश का कितना पैसा खर्च हो चुका है ? क्या पता है कि अफजल गुरु पर कितने रुपए खर्च हो गए है ? इन पागल कुत्तों को सरकार ने क्यों पाल रखा है, माफ़ करना पर कल कोई विमान अपहरण हो गया तो ? कल फिर कोई मुफ्ती को उठा ले गया तो? कल यदि कोई राहुल पर हाथ डाल बैठा तो ? कल को सचिन या रोबर्ट वाड्रा का अपहरण कर लिया तो ? फिर सरकार क्या करेगी इनका ? निश्चय ही इनको छोड़ना पड़ेगा | फिर ये रिस्क क्यों उठाया जा रहा है ? 
                 मेरे सवालों का सिर्फ इतना ही मतलब है कि, बाबा रामदेव ने सविधान में दिए गए आजादी के हक़ पर आवाज उठाई है और इस आवाज को इस तरह से दबाना और कुचलना हमारी आजादी के साथ धोखा है | सायद आज गाँधी होते तो उन्हें भी इसी प्रकार  जिल्लत झेलनी पड़ती | 
                 "बर्बाद-ए-गुलिस्तां  करने को तो एक ही उल्लू काफी था |
             हर साख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा ||

शेष कुशल 
मनोज चारण. 

Thursday, April 21, 2011

अब तो मान गए न कि, बेरोजगारों से रोजगार कमाते है, और धडल्ले से सरकार चलाते है !

जय श्रीअम्बे  !

         हाईकोर्ट ने आखिर टेट पर रोक लगा ही दी, फिर सरकार ने क्या सोच के इस परीक्षा के लिए फार्म भरवाए थे | आखिर विद्यार्थियों से ६०० रूपये फार्म के, १०० रूपये ऑनलाइन के, और लगभग १००० रूपये अतिरिक्त खर्च होने के बाद विद्यार्थियों के हाथ आया है तो बस अफ़सोस, कि अब क्या करेंगे ?
            सरकार के पास न तो कोई विजन है, और न ही कोई सोच, आखिर क्या चाहती है, ये सरकार | हमारे तो एक बात समझ में आठ है जो कभी बीकानेर के कवी ए.वी.कमल ने कही थी,

  "हमने पूछा मंत्रीजी से, कि आप  हर साल घाटे का बजट बताते हो,
   तो फिर ये सरकार कैसे चलाते हो |
  मंत्रीजी बोले, कि कोम्पेटटिव एक्सामीनेसन खूब करते है,
  १० कि जगह १०० को बुलाते है, इस प्रकार,
  बेरोजगारों से रोजगार कमाते है, और धड्ले से सरकार चलाते है |

          तो बात तो ये है, कि गहलोत सरकार तो बेरोजगारों से ही अपनी दाल रोटी चलाना चाहती है, तभी तो बजट में कहा था कि दाल रोटी खाओ हरी के गुण गाओ | पर गहलोत को पता नहीं कि मरे बैल कि चाम से लोह भस्म हो जाता है और आज का बेरोजगार किसी मरे बैल से कम नहीं है, जिसकी कमर झुकी हुई है, चेहरे पर मुर्दनी छाई  है, और हालत लंगड़े आम कि तरह हो गयी  है, जिसे जब देखो सब चूसने में और निचोने में लगे है | लेकिन आखिर कब तक निचोड़ोगे इसे कभी तो इसमें से कठोर गुठली निकल ही आएगी और जिस दीन गुठली निकली उस दिन न तो

                                           "तख़्त रहेगा और न ताज रहेगा | "

शेष कुशल.
मनोज चारण.


Tuesday, April 19, 2011

अफ़सोस ! ये लाइन कब ख़त्म होगी ?

सादर जय श्रीअम्बे  !

           रामनवमी कि सुभकामनाये सभी को | पिछले दिनों में राजस्थान के सभी विद्यार्थियों को अनेक लाइनों  में लगना पड़ा है,  क्योंकि एक तरफ तो पटवारी कि भर्ती थी और दूसरी तरफ टेट कि परीक्षा के फार्म भी भरे जा रहे थे |  और तो और लाइनों का तो ये आलम था की जब कोई बंद लेने से अपना काम निकल लेता था तो फिर ऐसे महसूस करता है की जैसे उसने टाइगर हिल पर फ़तेह कर ली है |
           और लाइन को तो क्या कहे कि, क्या हालत है ? पहले दुकान पर फार्म लेने की लाइन, फिर पटवारी के पास लाइन, फिर नोटेरी के पास लाइन, फिर तहसील में लाइन, फिर पोस्टऑफिस  में लाइन, फिर बैंक में लाइन, फिर प्रेवश पत्र की लाइन, फिर परीक्षा की लाइन, फिर भी बाकि बचे तो बेरोजगारी की लाइन | आखिर इस देश में लाइन कभी ख़त्म होगी या नहीं, शायद देश में ये लाइन कभी ख़त्म नहीं होगी |
           हो क्या रहा है इस देश में ?  सोचने की बात है, की जब राजस्थान में पीटीइटी करवाई जा रही है, जब बीएड करवाई जा रही है, फिर इस नई पात्रता परीक्षा का क्या ओचित्य  है ? आखिर इस राज्य के विद्यार्थिओ ने कोई अपराध कर दिया है क्या ? जो अशोक गहलोत इनके हाथ धो कर पीछे पड़े है | जिस दिन इस राज्य का आजादी के बाद का इतिहास लिखा जायेगा. उस दिन अशोक गहलोत का  नाम सबसे मूर्ख और सबसे हठधर्मी शासक के रूप में लिखा जायेगा, न सिर्फ लिखा जायेगा, बल्कि इनके नाम सबसे बड़ी गालियाँ भी लिखी जाएगी | मुझे तो लगता है की जैसे हमे पिछले जन्म में कोई पाप किया था, जो अशोक गहलोत जैसे शासक से पाला पड़ा है,  भगवान बचाए इन जैसे पापियों से.

शेष कुशल.

मनोज चारण.

Saturday, April 9, 2011

मान गए कि, बूढी हड्डियों में जान बाकि है !

जय श्रीअम्बे  !
                    नवरात्री कि ढेर साडी सुभकामनाये !
                     मान गए अन्ना हजारे  का  जिगर , वास्तव  में लगा कि फिर से इस देश में बापू लौट आये है, कल जब टीवी पर देख रहा था और पत्रकार अपनी अटकलें  लगा रहे थे भिड़ा रहे थे, तब एक बार तो लगा कि अन्ना सायद कहीं पर झुक न जाये और माफ़ करना जी मई जरा भगतसिंह टाइप का आदमी हूँ जो ये सोचता ही कि यदि गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन  चोरीचोरा के कारण रोका नहीं होता तो शायद भारत में  आजादी २५ साल पहले आ जाती और शायद हमे भगत, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रसेखर, सुभाषचन्द्र  जैसे नेताओं से महरूम नहीं होना पड़ता. पर वह रे गाँधी के सचे भक्त, तुने कमाल कर दिया और सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि बस झुकना ही पड़ा.
                 मान गए कि बूढी हड्डियों में जान अभी बाकि है, और ना सिर्फ बाकि है बल्कि इस देश के नोजवानो  से कुछ जयादा ही है, हमे भी अब सोचना पड़ेगा कि जब ७८ साल का एक बुढा  इस   पूरी वयवस्था के खिलाफ  खड़ा हो सकता है, एक महिला किरण उसके साथ कड़ी हो सकती है, एक साधारण सा केजड़ीवाल खड़ा हो सकता है, एक स्वामी खड़ा हो सकता है, तो फिर हम क्यों नहीं इस करप्सन के खिलाफ खड़े होते है, हमे ये करना ही होगा वरना कल आने वाली पीढ़ी पूछेगी कि जब एक बुढा तुम्हारे लिए लड़ रहा था तब तुम कहाँ पर थे ?  आइपीएल  के मैदान में या, फिर कहीं और ?
              इसलिए मेरे साथियों खड़े हो जाओ इस वयवस्था के खिलाफ और झंडा बुलंद करो इन्कलाब का, और जोर से कहो "इन्कलाब जिंदाबाद"
शेष  कुसल |
मनोज चारण.
                माँ करणी (चूहों वाली देवी) कि फोटो देशनोक मंदिर, बीकानेर जिला, राजस्थान.

Monday, April 4, 2011

सच ही कहा है झूठे का मुंह काला !

जय श्री अंबे ! 
        सभी को चैत्र के नवरात्री की ढेरों सुभकामनाएँ ! भारत क्रिकेट का नया सरताज बन गया है, और चारो तरफ खुसी का मंजर है, जिसे देखो गुण गा रहा है, धोनी और उसकी सेना का. पर लंका में क्या हो रहा है, कल अंग्रेजो के पूर्व कप्तान ने संगाकारा को दुनिया का बईमान बता दिया और क्यों नहीं बताये आखिर उसने काम ही ऐसा ही किया था. 
        भाई किसी ने सुना हो या न हो पर आपको तो पता ही था कि आपने क्या कहा था. आखिर इतिहास में नाम लिखाने का मोका जिन्दगी में बार-बार तो आता नहीं है और फिर ये तो क्रिकेट है, जिसमे कुछ ही दिनों पहले तो इसी वर्ल्डकप के ही एक मैच में सचिन को एम्पाएर ने आउट नहीं दिया था, पर वाह रे सचिन अपने आप ही मैदान छोड़ दिया. इसी तरह से एक मैच में गिलक्रिस्ट ने भी अपने आप मैदान छोड़ दिया था. इसे कहते है, इतिहास में नाम लिखने का मोका. पर भाई संगाकारा ने ये मोका गवा दिया. 
        अब दुनिया में सभी तो ईमानदार नहीं होते ना. फिर संगाकारा तो रावण की ओलाद है, जिनके खून में ही झूठ और फरेब सामिल है, पहले हमारी भोली-भाली सीतामाता को ठग के ले गया, पर हमारा धोनी तो पूरा हनुमान निकला जिसने आग लगा दी संगाकारा की चीटिंग को. वाह रे मेरे हनुमानो नहले पर दहला मार ही दिया. इसे कहते है "झूठे का मुंह काला."

शेष कुशल.
मनोज चारण.

Sunday, April 3, 2011

सितारों के आगे जहाँ और भी है !

              २८ सालों का सुखा  आखिर समाप्त हुआ है और धोनी और उसके धुरंधरों ने कपिल पाज़ी के कंधो का बोझ कम किया है. अकेले ही बेचारे १९८३ का वर्ल्डकप ढो रहे थे. खैर भारतवासियों को खुशियाँ मनाने का पूरा हक़ है, ऑफ़ क्यों नहीं होना चाहिए आखिर हमारे हनुमानों ने एक बार फिर लंका फतह की है. मेरे देश के इन                             नोजवानो को ढेरों बधाई. सचिन के लिए तो ये और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है की वो इस टीम का सदस्य है, जिसने वर्ल्डकप जीता है, ये एक ही तो कप था जिसमे सचिन ने पेप्सी नहीं पी थी, अब इसमें जी भर के सैम्पेन पी लेना सचिनजी ! 
               युवराज ने तो इस पूरे वर्ल्डकप में कमल कर दिया और कल उसका एक नया रूप देख कर मजा आ गया, पता ही नहीं था की इस रूखे चेहरे वाले इस कठोर आदमी में एक प्यारा दिल भी है और ऐसा दिल जो      बाग-बाग  ही नहीं हो रहा था बल्कि रो भी रहा था. भज्जी जैसे आदमी के आंसू देखे तो लगा की चलो अभी भारतीय अपनी जमीन पर ही है, जमीन को भूले नहीं है. पूरे देश को नाज है इन चंद नोजवानो पर जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझी है, हर बार. 
               मैच सुरु होने के बाद तक इस बार मैंने धोनी को जी भर के गाली दी थी पर अब जी भर के दाद भी दे रहा हूँ. गाली इसलिए की उसने पूरे टूर्नामेंट में एक बार भी अपना असली खेल नहीं दिखाया था, पर सोरी बोस आपकी स्पेशल पारी एक स्पेशल मैच के लिए बाकि थी तुमने देश के लिए वो पारी खेल कर सरे गिले दूर कर दिए मेरे भाई. गंभीर ने तो वो क्लास दिखाई है जैसी द्रविड़ में  थी. सभी को मेरा सलाम. 
                 पर एक बात और है जो सबसे बड़ी है, ये तो क्रिकेट में हम विजेता बने है, बैडमिन्टन में बने है, कब्बडी में बने है, बोक्सिंग में बने है, सूटिंग में बने है, पर असली हीरो हम तब बनेगे जब हम होकी, फूटबाल, तैराकी, एथेलिटिक जैसे सभी खेलों में आगे होंगे और ओलोंपिक में सबसे आगे होंगे. जैसे इस विजय पर सारा देश नचा है, अफ़सोस कि सारा देश अन्य खेलों में जीतने पर ऐसे नहीं नाचता है, ये गलत बात है. मैं ध्यान खींचना चाहता हूँ सभी का चाहे वो प्रधानमंत्री हो या कोई और देश कि जनता हो या फिर खुद क्रिक्केटर कि इस देश में कुछ खिलाडियों को तो पैसो में डुबोया जा रहा है, और कुछ को अपनी तनख्वा के लिए भी भूख हड़ताल करनी पड़ती है. ये नहीं होना चाहिए, ये बुरी बात है. 
                     इसलिए कह रहा हूँ कि 
                                                       "सितारों    के   आगे   जहाँ   और   भी     है,
                                                        अभी तो जमी जीती है, आसमा और भी है."

देश को इस सुभ मोके पर ढेरों बधाई, जय हिंद.
शेष कुशल.
मनोज चारण. 




Thursday, March 31, 2011

क्रिकेट की हुई है जीत, देश को बधाई हो !

           आखिर मेरी बात को भगवान ने सुन लिया और कल के मैच में असली जीत क्रिकेट की हुई है,  कल के मैच में जहीर और साहिद आफरीदी की मित्रता भरी जुगलबंदी हो या फिर सचिन के साथ आफरीदी की मजाक, हो या फिर वीरू के चेहरे की मुस्कान.
        खैर जीत तो गए है अब श्रीलंका के चीतों के साथ मुकाबला होना है, भारत के शेरो को अब और ज्यादा मजबूती से ही खेलना होगा.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 29, 2011

बज उठी रणभेरियाँ, कोलाहल मचने को है !

            मोहाली में मैदान तैयार हो गया है, रणभेरियाँ बज उठी है, अब तो बस कोलाहल मचने को बाकि रहा है, कुछ ऐसा ही मंजर है, इस वक्त भारत का और अपने पडोसी पाक का भी. पता नहीं क्यों ऐसे लग रहा है कि, जैसे इस क्रिकेट मैच को कारगिल कि अंतिम जंग मान बैठे है, सब. तभी तो मिडिया, समाचार पत्र, सटोरिये, दर्सक, राजनेता, अफसर, विद्यार्थी यहाँ तक कि आम मजदुर पर भी जूनून छाया है.
             खैर सब ठीक है, दुआ करो कि सद्भावना के चक्कर में हमारी टीम मैच ना हार जाये. परीक्षा देने वाले मेरे जैसे तो परीक्षा ही देंगे, क्योंकि खेल तो आखिर खेल है, जिन्दगी का एक हिस्सा है छोटा सा, पूरी जिन्दगी नहीं है. जिसका जो काम है वो अपना काम करे और साथ में खेल का भी आनंद उठाये. देश कि टीम को अग्रिम बधाई और सुभकामनाये,  कि वो मैच जीते और लोगो के दिल भी. पाकिस्तानी टीम के लिए भी सुभकामनाये.

                                       "बज  उठी   रणभेरियाँ,   कोलाहल   मचने   को    है,
                                        देख लेना दुनिया वालो, सेहरा हमे सजने को है"

शेष कुशल !
मनोज चारण.

Monday, March 28, 2011

क्यों बनाया जा रहा है, युद्ध इस मैच को ?

              भारत और पाकिस्तान में ३० मार्च को सेमीफ़ाइनल मैच होना है, भारत और पाकिस्तान के मिडिया में तो जैसे आग लग गई है, क्या हो जायेगा इस मैच से ? कोनसी क़यामत आ रही है, जो चारो तरफ हाय हाय मची है.
              और सब तो माना कि, अपनी अपनी रोटियों  को खीरे दे रहे है, पर मनमोहनसिंह को क्या हो गया है जो दिल को हिंद महासागर बना रहे है,  क्या अटलजी की गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा? फिर से वही दिल लाया हूँ सनम तेरे लिए, क्या जरुरत है, गिलानी को यहाँ पर बुलाने की? कही ऐसा ना हो जाये कि गिलानीजी मैच देख रहे हो और पीछे से कोई कस्साब फिर से किसी स्टेशन पर हमला कर दे. बच के रहना चाहिए इस देश को.
                                                                              खैर बात कुछ  दूसरी है, एक साधारण क्रिकेट मैच को मिडिया ने इतना हाइप कर दिया है, कि बस जाने फिर से कारगिल कि लड़ाई हो गई है, क्या हम फिर से ७१ का युद्ध करने जा रहे है? क्या सचिन सेना के जगजीतसिंह बन गए है? क्या युवराज लेफ्टिनेंट सगतसिंह बन गए है, या धोनी मानेकशा ? नहीं ये सब कुछ नहीं है बस लोगो कि भावनाओं के साथ खिलवाड़ है, हमे बचना चाहिए इन सबसे और खेल को खेल ही रहना चाहिए. हम तो यही चाहते है, कि बस क्रिकेट क्रिकेट ही बना रहे, तो मजा है. हम जीत कि दुआ करते है. पर मन इंडिया के साथ है.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 22, 2011

होली की बधाई ! पर, देश को याद रखना !


    होली चली गई, और हंसी खुसी चली गई, तो कोई दंगा हुआ कोई फसाद. चलो अछा हुआ पर होली के पहले कुछ ऐसा हुआ जो लोगो को दर्द ही नहीं बल्कि कुछ सोचने की नई वजह भी दे गया, सवाईमाधोपुर में हुई घटना ने पुरे प्रशासन को हिला के रख दियाथानेदार फूलमोह्म्द्द को जिन्दा जला देना एक शर्मनाक  घटना है. क्या हो गया है इस देश को. क्या पुलिस में, फोज में किसी के बेटे नहीं होते ? क्या कोई किसी का पति नहीं होता या किसी का भाई नहीं होता ? पर इस देश के हुक्मरानों को तो अपनी गद्दी बचाने में ही फुर्सत नहीं मिल रही है. देश की संसद में नोटों की गड्डिया लहराई गई तब देश के मोजूदा प्रधानमंत्रीजी ने इसे एक शर्मनाक घटना बताया था. पर अब विकिलीक्स जो कह रहा है, वो क्या है, क्या प्रधानमंत्री इस पर अपनी सफाई से खुस है ?
          क्यों नहीं होंगे आखिर इस देश की आजादी में उन्होंने क्या खोया है, जो दुखी होंगे ? बाबा रामदेव की सीधी चुनोती पर इन्होने रोक लगा दी है, सच है इस देश में तो "हर डाल पर उल्लू बैठा है"
          पर क्या देश के लोगो को तुम रोक पाओगे जब वो खड़े होंगे वोट देने के लिए तो रोक पाओगे क्या उनको और वो दिखा देंगे तुम्हे की ये देश किसी के बाप की जागीर नहीं है. रोक सको तो रोक लेना.
           खैर बात करते है कल की, कल २३ मार्च है, शहीद भगतसिंह की शहीदी का दिन, इस देश को भूलना नहीं चाहिए कि यदि इन जैसे लोग नहीं होते तो शायद हम लोग आज भी किसी कि ठोकरे खा रहे होते. इन शहीदों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम.

शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 15, 2011

हम क्यों झुके किसी के सामने ?

हम हमारे ईमान पर यदि सही है, यदि हम हमारे काम पर सही है, हम हमारे नाम पर यदि सही है,  यदि हम सभी जगह सही है और निर्दोष है, तो फिर हम क्यों किसी के सामने झुकें?
झुकना जीवन की निसानी है, पर ज्यादा झुकना कमजोरी की निसानी है, और अधिक झुकने से रीढ़ भी टेढ़ी हो जाती है, इसलिए झुकना उतना ही ठीक है, जितने से आपकी विनम्रता झलक सके न की आपकी कमजोरी .
झुकने में कोई बुराई नहीं है, पर लोगों को हमारी विनम्रता में कभी-कभी हमारी कमजोरी नजर आती है, जरूरी नहीं होता हमेसा ही झुकने वाला कभी कोई वार नहीं कर सकता या कभी आपके विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता.  पर जो ये सोचता है, वो गलत समझता है, पता नही क्या ? कि,  अधिक दबाने पर बेंत ज्यादा अधिक चोट करती है, जब बेंत जैसी निर्जीव चीज भी पलटवार कर सकती है तो फिर हम तो हाड-मांस के इन्सान है, जिनमे वो सारी ताकत  भगवान ने दी है जो उसने किसी दूसरे को भी दी है.
इसलिए हर किसी को सोचना चाहिए जब तक अगला झुक रहा इसका मतलब ये नहीं कि, झुकने वाला कभी खड़ा नहीं होगा, जिस दिन खड़ा हो गया उस दिन बचाने वाला नहीं होगा.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Monday, March 14, 2011

जापान के साथ हमारी सहानुभूति है पर संभल जाओ !

जापान में भूकंप आया तो मेरे दोस्तों ने मुझे बताया की जापान तो बर्बाद हो गया है,   मैंने कारन पूछा  तो पता चला कि वहां पर भूकंप आया है. मैंने कहा कि इस भूकंप से जापान का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि वो लोग भूकंप के लिए तैयार रहते है. और मेरी बात सही साबित हुई वहां पर भूकंप से नहीं बलिकी थोड़ी देर बाद आई सुनामी से ही तबाही हुई है.
हम जापान कि इस तबाही पर बेहद दुखी है, और मेरे देश ने इस तबाही में जापान कि मदद में कदम भी उठाया है. हमे गर्व है कि हमे ऐसी संस्कृति पर जहाँ पर दुसरो  का दुःख अधिक महसूस किया जाता है.
खैर असली बात कुछ और है, मैं इस मुद्दे पर आना चाहता हूँ कि जापान को अपने इतिहास पर ध्यान देना चाहिए कि उसने अमेरिका, चीन के साथ क्या किया था ? क्या दुसरे महायुद्ध में जापान का कदम सही था ? क्या उसके सैनिको का महिलाओ के साथ सलूक सही था ? क्या जापान ने अपने इतिहास में कभी भी कोई सही काम भी किया है ?
                 शायद नहीं !  जापान ने कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे मानवता को उसपे गर्व हो.
जापान कि नई पीढ़ी को समझना चाहिए कि सिर्फ अपना देश और देशभक्ति ही नहीं होती बल्कि,  सम्पुर्ण विश्व कि मानवता भी कोई चीज होती है,  हमारा और हमारी संस्कृति का नारा तो हमेसा     से ही " जिओ और जीनो दो " कि भावना रही है, हमारा धेय वाक्य "वसुधैव कुटुम्बकम"  रहा है,
इसलिए जापान को भविष्य में ध्यान रखना चाहिए ओर इस आपदा में सम्पूर्ण विश्व इनके साथ है,
शेष कुसल.
मनोज चारण.

Thursday, March 10, 2011

Mayawati Kya Chahti hai.

Mayawati ne mulayamsing ke aandolan ko galat bataya hai, kya is desh
me saidhantik virodh karna galat hai. kya desh aaj bhi gulam hai ?
Aaj agar Gandhiji hote to kya hota, syad unhe bhi aise peeta jata.
hum mulayamsingh ke saath hai, is sangrash me.

धोखा हुई गवा हमका मुख्यमंत्री दरबार में !

राजस्थान मुख्यमंत्री ने नरेगा कार्मिको के साथ धोखा किया है. जब हमारे नेताओं को
कुछ उचित समाधान करने का आश्वासन दिया ही था तो फिर सरकार के सामने क्या मजबूरी है की एक तरफ तो नए कर लगा रही है, और दूसरी  तरफ किसी भी पारकर से नरेगा कार्मिकों को राहत नहीं दे रही है. क्या इस सरकार के साथ हमे फिर से संघर्स नहीं करना चाहिए.
दोस्तों ये संघर्स खून मांगता है, फिर चाहे अपना हो या किसी दुसरे का. लेकिन परमवीर चक्र विजेता हवलदार योगेन्द्र यादव के सब्दो में कहे तो हम अपना खून क्यों देंगे हम इन सालों देश के गद्दारों की छाती फोड़कर खून निकालेंगे.
ये सरकार हमे ऐसे तो हमारा हक देगी नहीं, हर नरेगा कार्मिक को अपने विधायक से बात करनी चाहिए और विधानसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना चाहिए.
मैंने कोसिस की है, आप भी करें और विधानसभा सदस्य से मिले और अपनी बात को पुरजोर  से रखे. जब बंगाल में पैसे ज्यादा दिए जा सकते है, तो फिर राजस्थान में क्यों नहीं.
ये बात आपको अपनी नरेगा कार्मिक संघ की वेबसाइट पर मिल जाएगी,  वेबसाइट पर बंगाल का सुर्कुलर डाला हुआ है, देख लेना. फिर तुलनात्मक विवरण बना कर अपने विधायक को इसे ढंग से समझाना फिर देखना की आपकी बात को वजन मिलता है या नहीं. मैंने कोसिस की है अब आप भी करें. हम अवश्य सफल होंगे इसी आशा के साथ फिर मिलेंगे. धन्यवाद.
मनोज चारण.

Monday, March 7, 2011

आखिर अध्यापक पात्रता परीक्षा का क्या मतलब है !

भारत सरकार आखिर क्या चाहती है इस देश के बेरोजगारों के साथ. पहले पीटीईटी
दो, फिर बी.एड. की परीक्षा, फिर प्रतियोगी परीक्षा देनी पड़ती है तब मिलती है
अध्यापक की नोकरी.
आखिर सरकार बेरोजगारों के खिलाफ हाथ धो कर ही नहीं बल्कि नहा धो कर
पड़ी है. मेरे समझ में नहीं आता की सारे कानून इस देश में गरीबों के लिए,
बेरोजगारों के लिए, कर्मचारियों के लिए ही क्यों बनते है. मेरे तो ये समझ में
नहीं आता कि, आखिर हम भारत में पैदा हो गए ये ही हमारी गलती है क्या ?
इस देश के नेताओं को ये बात समझ में क्यूँ नहीं आती है कि यदि यहाँ का
नोजवान मिश्र की तरह खड़ा हो गया तो फिर छुपने को जगह नहीं बचेगी.
प्रधानमंत्री को सायद समझ में ही नहीं आ रहा है कि, देश के युवा  के साथ
उनकी सरकार कितना अत्याचार कर रही है.
संभल जाओ मनजी वरना,
"रहिमन हाय गरीब की, कबहूँ न निर्फल जाय.
मरे बैल की चाम से लोह भस्म हो जाय"
संभल जाओ मेरे देश के हुक्मरानों वरना तुम्हे ये हाय ले बैठेगी.
मनोज चारण.

Monday, February 21, 2011

जायज मांग है कलमाड़ी की !

कलमाड़ी ने कहा है कि उसके के पास तो बस पांच पर्तिसत भुगतान का ही पॉवर था परन्तु पिच्यानवे पर्तिसत का पॉवर तो अन्य एजिंसियो के पास था, तो अब कॉमनवेल्थ घोटाले की जांच भी जेपीसी से करवाई जनि चाहिए.
सच पूछो तो हमे तो कलमाड़ी पर दया आने लगी है, कि भैया खाया तो सभी ने है,
फिर बेचारे इस अकेले पंछी को ही क्यों परेसान किया जा रहा है,
पर सच बताएं इस देश में भैया चूहे पर तो पिंजरे लगा दिए जाते है, पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बंधे.
सच तो ये है कि कलमाड़ी तो एक छोटा सा चूहा है, कॉमनवेल्थ घोटाले के जहाज का, असली बिल्लियाँ और गीदड़ तो अभी तक बाकि बचे हुए है, खेल मंत्री, दिल्ली कि मुख्यमंत्री, डीडीए के चेयरमैन, खेल संघो के चेयरमैन आदि भी तो सामिल थे इस नोटंकी में, फिर उनको क्यों नहीं पकड़ा जा रहा है, इस देश में ऊँचे पदों पर बैठे लोग अक्सर बच जाते है, और निचे कि मुर्गियां फंस जाती है.
कलमाड़ी ने अब सच ही कहा है कि इस कॉमनवेल्थ घोटाले कि जांच  जेपीसी  से ही होनी चाहिए.
मनोज चारण.

Thursday, February 17, 2011

अभी तो शुरुआत है, आगे देखो क्या होता है !

2−जी घोटाले की जांच में करुणानिधि परिवार को भी शामिल कर लिया गया है,
टीवी चैनल कलैग्नार के दफ्तर पर छापा मारना जिसमे करुणानिधि की बेटी कनिमोझी के भी 20 फीसदी शेयर हैं, ये दर्शाता है कि, इस आग में झुलसेंगे तो सभी
अब होगा कब और जलेंगे कब ये तो समय ही बताएगा,   पर लगता है, अभी तो
अंगारे काफी तेज है, और तेज अंगारों पर रोटी सिकती तो है पर जल भी सकती है,
इसलिए अगले दो-तीन दिन काफी गरमा-गरम रहने वाले है,
मजा तो तब आएगा जब इन देश के दुश्मनों को तिहाड़ में स्थाई  बसेरा मिल
जायेगा और देश को एहसास होगा कि वास्तव में कानून के हाथ काफी लम्बे
होते है, देखते है कि अगला सीकर कौन होता है.
मनोज चारण.


राजा गया तिहाड़ ! चूहे के सामने आया पहाड़ !


आखिर राजा का बाजा बज ही गया और वो तिहाड़ के अपने महल
में रहने के लिए भेज दिया ही गया,
देश के कानून और सविधान पर आखिर कुछ तो विश्वास जमेगा देश
के लोगों का, 
 होना भी चाहिए कि देश से बढ़कर कोई राजा या करूणानिधि नहीं होता,
अब तो राडिया को भी पता चल गया होगा कि इस देश में जब तक
कुछ नहीं होता तब तक सब ठीक है और जब होने लगता है तो फिर
कुछ नहीं बचता है,
सच ही कहा है किसी ने कि,
ये जो पब्लिक है सब जानती है, भाई पब्लिक है.
मनोज चारण

मजबूर तो देश हो गया है, प्रधानमंत्रीजी !

जब देश का रहनुमा, देश का प्रधानमंत्री कहने लगे कि,
मैं मजबूर हूँ तो फिर ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है
कि, कहीं पर कुछ नहीं बहुत कुछ गलत हो रहा है,
प्रधानमंत्रीजी से मै एक बात कहना चाहता हूँ, कि ये आपकी
गलती नहीं है, सिर्फ आप ही नहीं ये देश भी मजबूर हो गया है,
भ्रष्ट नेताओं को झेलने के लिए, ये मजबूरी सिर्फ आपकी नहीं,
हमारी भी है कि हम कुछ नहीं कर सकते सिवाय तमासा देखने के,
इस से तो अच्छा  होता कि आप ये कहते कि ये देखो मैं इस्तीफा दे
रहा हूँ क्योंकि मैं देश को उचित दिशा नहीं दे सका और मैं अब इस
लायक नहीं कि देश कि बागडोर संभाल सकूँ,
पर अफ़सोस कि देश के सामने गठबंधन कि मजबूरी बताने वाले आप
देश के साठ पर्तिसत युवाओं के साथ धोका कर बैठे,
आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले ही जब सोनिया गाँधी ने कुर्सी छोड़ी,
थी तो मैंने अपने मित्र से कहा था कि ये कुर्सी शायद सरदारजी को
मिल जाये, और मिली तो मैं बहुत खुश भी हुआ था, कि देश को इमानदार
आदमी मिला है, पर आपकी ईमानदारी इस देश पर भरी पड़ गयी, जी
जरूरत देश को मजबूरी गिनने कि नहीं पर कुछ कर दिखाने की है,
हमे अभी भी आपसे काफी उमीदें है, जागो प्रधानमंत्रीजी जागो.
मनोज चारण



Monday, February 14, 2011

कब फसेंगे मगरमच्छ डीआरआइ के जाल में !

राहत अली को गिरफ्तार कर लिया और जब्त कर लिए गए एक लाख से भी ज्यादा डोलर,
भाई ये बात तो सरफरोश फिल्म में आमिरखान पहले ही साबित कर चुके है की पाकिस्तानी
कलाकार हिंदुस्तान को सिर्फ एक कोठा मानते है, फर्क सिर्फ इतना है कि, कोठे पर बैठने वाली
वेश्याओं को हम गन्दी और नफरत भरी निगाहों से देखते है और इन कलाकारों को सर आँखों
पर बिठाते है,
क्यों आखिर भारत में कलाकारों कि कमी है क्या, क्या लता, रफ़ी, किशोर, मुकेश, सुरैया, मन्नादा, महेंद्रकपूर,
पंकज उदास, सोनू निगम, अभिजीत, दलेर, हंसराज, जगजीतसिंह आदि कलाकार की श्रेणी में नहीं
आते क्या ?
फिर क्यों बावले हो रहे है हम इन पाकिस्तानी लुटेरों के पीछे. माना की कलाकार एक साझी
विरासत होते है, पर जब एक धर्म विशेस पर एमएफ हुसैन नंगी तस्वीरे बनाता है तो फिर सोचना पड़ता
है जी की सायद कलाकार भी अब साम्प्रदायिक हो गए है,
खैर ये तो बात थी और पर क्या राहत को पकड़ना ही असली मुजरिमों को पकड़ना है, कब तक राजा,
कलमाड़ी, चौहान, येदियुरप्पा, मारन, करुना जैसे बड़े मगरमच्छ जाल से बाहर रहेंगे.
इन बड़े मगरमच्छो के लिए जाल भी मजबूत होना चाहिए और मछुआरा भी.
प्रधानमंत्री जी से देश को बड़ी आशाएं है, कि सायद वे कुछ मिशाल रखेंगे. देश के सामने ईमानदारी कि,
देश को बड़ी उम्मीदे है इनसे.
तो प्रधानमंत्रीजी उठो और देश को दिशा दीजिये प्लीज हमे आप पर बेहद आशा है,
मनोज चारण.

इसे कहते है घर में बुलाकर मारना !

धोनी के साथियों ने आखिर पोंटिंग एंड कंपनी को घर में बुलाकर मार ही लिया, साबाश मेरे शेरो !
पर १ बात जरूर है की हमारे बल्लेबाजो ने क्या किया जी, अकेले सहवाग, पठान और आश्विन को छोड़ दो तो
गए साले, सब के सब बारह के भाव,
हो क्या गया है इस टीम को मेरे शेर बिना सचिन के बन्दे खेल ही नहीं सकते.
भैया कब तक बेचारे सचिन की बूढी हड्डियों से तेल निकालोगे. यार कभी तो छोड़ दो बेचारे को,
खैर अंत भला तो सब भला, भला हो चावला का और थोडा बहुत भज्जी का, जो तुम्हारी नाक बचा ली,
वरना गए थे तुम तो,
अगर यही हाल रहा तो फिर जीत लिया वर्ल्ड कप,
मेरे शेरो खेलो और ऐसे खेलो जैसे कपिल खेलते थे.
तभी जीत सकेंगे हम वर्ल्ड कप.
अग्रिम बधाई आपको.
मनोज चारण.

Wednesday, February 2, 2011

राजा का बज गया बाजा

नमस्कार !
आखिर २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राजा को गिरफ्तार कर लिया गया है.
कब तक छिपाते अपने गुनाहों को, किसी को तो बलि का बकरा बनना ही था.
सो बन गया राजा और बज गया बाजा.
मनमोहन निसंदेह एक इमानदार पीएम है लेकिन क्या करे इस ईमानदारी का,
भाड़ में जाये ऐसी ईमानदारी, जो देश को महंगाई और बईमानी से  ना बचा सके,
क्या करें ऐसे प्रधानमंत्री का.
आखिर इस देश को भी सायद मिश्र के लोगो की तरह सडको पर आना पड़ेगा.
मनोज चारण.

Kya ho Raha hai is Desh ko.kk

नमस्कार !
क्या हो रहा है मेरे देश को ? ये देश अपनी प्राणवायु क्यों खोता जा रहा है, समझ में नहीं आ रहा है, कहाँ गयी इसकी जीवनदायनी शक्ति. देश को रोज किसी न किसी बात पर शर्मिंदा होना पड़ रहा है. फिर चाहे वो घोटाले हो या फिर तिरंगे को फहराने की बात. इस देश का सविधान क्या सिर्फ चाँद लोगो क लिए ही बना है. क्या इस देश में हिन्दू होना अपराध हो गया है. जिसे देखो सेकुलरवाद के नाम पर हिन्दुओ को गली देने पर लगा है. सोचना पड़ेगा की शायद इस देश में हिन्दू होना और हिन्दुत्व की बात करना भी आपराध हो गया है. हे भगवन बचो मेरे देश को.
मनोज चारण.