Thursday, March 31, 2011

क्रिकेट की हुई है जीत, देश को बधाई हो !

           आखिर मेरी बात को भगवान ने सुन लिया और कल के मैच में असली जीत क्रिकेट की हुई है,  कल के मैच में जहीर और साहिद आफरीदी की मित्रता भरी जुगलबंदी हो या फिर सचिन के साथ आफरीदी की मजाक, हो या फिर वीरू के चेहरे की मुस्कान.
        खैर जीत तो गए है अब श्रीलंका के चीतों के साथ मुकाबला होना है, भारत के शेरो को अब और ज्यादा मजबूती से ही खेलना होगा.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 29, 2011

बज उठी रणभेरियाँ, कोलाहल मचने को है !

            मोहाली में मैदान तैयार हो गया है, रणभेरियाँ बज उठी है, अब तो बस कोलाहल मचने को बाकि रहा है, कुछ ऐसा ही मंजर है, इस वक्त भारत का और अपने पडोसी पाक का भी. पता नहीं क्यों ऐसे लग रहा है कि, जैसे इस क्रिकेट मैच को कारगिल कि अंतिम जंग मान बैठे है, सब. तभी तो मिडिया, समाचार पत्र, सटोरिये, दर्सक, राजनेता, अफसर, विद्यार्थी यहाँ तक कि आम मजदुर पर भी जूनून छाया है.
             खैर सब ठीक है, दुआ करो कि सद्भावना के चक्कर में हमारी टीम मैच ना हार जाये. परीक्षा देने वाले मेरे जैसे तो परीक्षा ही देंगे, क्योंकि खेल तो आखिर खेल है, जिन्दगी का एक हिस्सा है छोटा सा, पूरी जिन्दगी नहीं है. जिसका जो काम है वो अपना काम करे और साथ में खेल का भी आनंद उठाये. देश कि टीम को अग्रिम बधाई और सुभकामनाये,  कि वो मैच जीते और लोगो के दिल भी. पाकिस्तानी टीम के लिए भी सुभकामनाये.

                                       "बज  उठी   रणभेरियाँ,   कोलाहल   मचने   को    है,
                                        देख लेना दुनिया वालो, सेहरा हमे सजने को है"

शेष कुशल !
मनोज चारण.

Monday, March 28, 2011

क्यों बनाया जा रहा है, युद्ध इस मैच को ?

              भारत और पाकिस्तान में ३० मार्च को सेमीफ़ाइनल मैच होना है, भारत और पाकिस्तान के मिडिया में तो जैसे आग लग गई है, क्या हो जायेगा इस मैच से ? कोनसी क़यामत आ रही है, जो चारो तरफ हाय हाय मची है.
              और सब तो माना कि, अपनी अपनी रोटियों  को खीरे दे रहे है, पर मनमोहनसिंह को क्या हो गया है जो दिल को हिंद महासागर बना रहे है,  क्या अटलजी की गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा? फिर से वही दिल लाया हूँ सनम तेरे लिए, क्या जरुरत है, गिलानी को यहाँ पर बुलाने की? कही ऐसा ना हो जाये कि गिलानीजी मैच देख रहे हो और पीछे से कोई कस्साब फिर से किसी स्टेशन पर हमला कर दे. बच के रहना चाहिए इस देश को.
                                                                              खैर बात कुछ  दूसरी है, एक साधारण क्रिकेट मैच को मिडिया ने इतना हाइप कर दिया है, कि बस जाने फिर से कारगिल कि लड़ाई हो गई है, क्या हम फिर से ७१ का युद्ध करने जा रहे है? क्या सचिन सेना के जगजीतसिंह बन गए है? क्या युवराज लेफ्टिनेंट सगतसिंह बन गए है, या धोनी मानेकशा ? नहीं ये सब कुछ नहीं है बस लोगो कि भावनाओं के साथ खिलवाड़ है, हमे बचना चाहिए इन सबसे और खेल को खेल ही रहना चाहिए. हम तो यही चाहते है, कि बस क्रिकेट क्रिकेट ही बना रहे, तो मजा है. हम जीत कि दुआ करते है. पर मन इंडिया के साथ है.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 22, 2011

होली की बधाई ! पर, देश को याद रखना !


    होली चली गई, और हंसी खुसी चली गई, तो कोई दंगा हुआ कोई फसाद. चलो अछा हुआ पर होली के पहले कुछ ऐसा हुआ जो लोगो को दर्द ही नहीं बल्कि कुछ सोचने की नई वजह भी दे गया, सवाईमाधोपुर में हुई घटना ने पुरे प्रशासन को हिला के रख दियाथानेदार फूलमोह्म्द्द को जिन्दा जला देना एक शर्मनाक  घटना है. क्या हो गया है इस देश को. क्या पुलिस में, फोज में किसी के बेटे नहीं होते ? क्या कोई किसी का पति नहीं होता या किसी का भाई नहीं होता ? पर इस देश के हुक्मरानों को तो अपनी गद्दी बचाने में ही फुर्सत नहीं मिल रही है. देश की संसद में नोटों की गड्डिया लहराई गई तब देश के मोजूदा प्रधानमंत्रीजी ने इसे एक शर्मनाक घटना बताया था. पर अब विकिलीक्स जो कह रहा है, वो क्या है, क्या प्रधानमंत्री इस पर अपनी सफाई से खुस है ?
          क्यों नहीं होंगे आखिर इस देश की आजादी में उन्होंने क्या खोया है, जो दुखी होंगे ? बाबा रामदेव की सीधी चुनोती पर इन्होने रोक लगा दी है, सच है इस देश में तो "हर डाल पर उल्लू बैठा है"
          पर क्या देश के लोगो को तुम रोक पाओगे जब वो खड़े होंगे वोट देने के लिए तो रोक पाओगे क्या उनको और वो दिखा देंगे तुम्हे की ये देश किसी के बाप की जागीर नहीं है. रोक सको तो रोक लेना.
           खैर बात करते है कल की, कल २३ मार्च है, शहीद भगतसिंह की शहीदी का दिन, इस देश को भूलना नहीं चाहिए कि यदि इन जैसे लोग नहीं होते तो शायद हम लोग आज भी किसी कि ठोकरे खा रहे होते. इन शहीदों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम.

शेष कुशल.
मनोज चारण.

Tuesday, March 15, 2011

हम क्यों झुके किसी के सामने ?

हम हमारे ईमान पर यदि सही है, यदि हम हमारे काम पर सही है, हम हमारे नाम पर यदि सही है,  यदि हम सभी जगह सही है और निर्दोष है, तो फिर हम क्यों किसी के सामने झुकें?
झुकना जीवन की निसानी है, पर ज्यादा झुकना कमजोरी की निसानी है, और अधिक झुकने से रीढ़ भी टेढ़ी हो जाती है, इसलिए झुकना उतना ही ठीक है, जितने से आपकी विनम्रता झलक सके न की आपकी कमजोरी .
झुकने में कोई बुराई नहीं है, पर लोगों को हमारी विनम्रता में कभी-कभी हमारी कमजोरी नजर आती है, जरूरी नहीं होता हमेसा ही झुकने वाला कभी कोई वार नहीं कर सकता या कभी आपके विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता.  पर जो ये सोचता है, वो गलत समझता है, पता नही क्या ? कि,  अधिक दबाने पर बेंत ज्यादा अधिक चोट करती है, जब बेंत जैसी निर्जीव चीज भी पलटवार कर सकती है तो फिर हम तो हाड-मांस के इन्सान है, जिनमे वो सारी ताकत  भगवान ने दी है जो उसने किसी दूसरे को भी दी है.
इसलिए हर किसी को सोचना चाहिए जब तक अगला झुक रहा इसका मतलब ये नहीं कि, झुकने वाला कभी खड़ा नहीं होगा, जिस दिन खड़ा हो गया उस दिन बचाने वाला नहीं होगा.
शेष कुशल.
मनोज चारण.

Monday, March 14, 2011

जापान के साथ हमारी सहानुभूति है पर संभल जाओ !

जापान में भूकंप आया तो मेरे दोस्तों ने मुझे बताया की जापान तो बर्बाद हो गया है,   मैंने कारन पूछा  तो पता चला कि वहां पर भूकंप आया है. मैंने कहा कि इस भूकंप से जापान का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि वो लोग भूकंप के लिए तैयार रहते है. और मेरी बात सही साबित हुई वहां पर भूकंप से नहीं बलिकी थोड़ी देर बाद आई सुनामी से ही तबाही हुई है.
हम जापान कि इस तबाही पर बेहद दुखी है, और मेरे देश ने इस तबाही में जापान कि मदद में कदम भी उठाया है. हमे गर्व है कि हमे ऐसी संस्कृति पर जहाँ पर दुसरो  का दुःख अधिक महसूस किया जाता है.
खैर असली बात कुछ और है, मैं इस मुद्दे पर आना चाहता हूँ कि जापान को अपने इतिहास पर ध्यान देना चाहिए कि उसने अमेरिका, चीन के साथ क्या किया था ? क्या दुसरे महायुद्ध में जापान का कदम सही था ? क्या उसके सैनिको का महिलाओ के साथ सलूक सही था ? क्या जापान ने अपने इतिहास में कभी भी कोई सही काम भी किया है ?
                 शायद नहीं !  जापान ने कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे मानवता को उसपे गर्व हो.
जापान कि नई पीढ़ी को समझना चाहिए कि सिर्फ अपना देश और देशभक्ति ही नहीं होती बल्कि,  सम्पुर्ण विश्व कि मानवता भी कोई चीज होती है,  हमारा और हमारी संस्कृति का नारा तो हमेसा     से ही " जिओ और जीनो दो " कि भावना रही है, हमारा धेय वाक्य "वसुधैव कुटुम्बकम"  रहा है,
इसलिए जापान को भविष्य में ध्यान रखना चाहिए ओर इस आपदा में सम्पूर्ण विश्व इनके साथ है,
शेष कुसल.
मनोज चारण.

Thursday, March 10, 2011

Mayawati Kya Chahti hai.

Mayawati ne mulayamsing ke aandolan ko galat bataya hai, kya is desh
me saidhantik virodh karna galat hai. kya desh aaj bhi gulam hai ?
Aaj agar Gandhiji hote to kya hota, syad unhe bhi aise peeta jata.
hum mulayamsingh ke saath hai, is sangrash me.

धोखा हुई गवा हमका मुख्यमंत्री दरबार में !

राजस्थान मुख्यमंत्री ने नरेगा कार्मिको के साथ धोखा किया है. जब हमारे नेताओं को
कुछ उचित समाधान करने का आश्वासन दिया ही था तो फिर सरकार के सामने क्या मजबूरी है की एक तरफ तो नए कर लगा रही है, और दूसरी  तरफ किसी भी पारकर से नरेगा कार्मिकों को राहत नहीं दे रही है. क्या इस सरकार के साथ हमे फिर से संघर्स नहीं करना चाहिए.
दोस्तों ये संघर्स खून मांगता है, फिर चाहे अपना हो या किसी दुसरे का. लेकिन परमवीर चक्र विजेता हवलदार योगेन्द्र यादव के सब्दो में कहे तो हम अपना खून क्यों देंगे हम इन सालों देश के गद्दारों की छाती फोड़कर खून निकालेंगे.
ये सरकार हमे ऐसे तो हमारा हक देगी नहीं, हर नरेगा कार्मिक को अपने विधायक से बात करनी चाहिए और विधानसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना चाहिए.
मैंने कोसिस की है, आप भी करें और विधानसभा सदस्य से मिले और अपनी बात को पुरजोर  से रखे. जब बंगाल में पैसे ज्यादा दिए जा सकते है, तो फिर राजस्थान में क्यों नहीं.
ये बात आपको अपनी नरेगा कार्मिक संघ की वेबसाइट पर मिल जाएगी,  वेबसाइट पर बंगाल का सुर्कुलर डाला हुआ है, देख लेना. फिर तुलनात्मक विवरण बना कर अपने विधायक को इसे ढंग से समझाना फिर देखना की आपकी बात को वजन मिलता है या नहीं. मैंने कोसिस की है अब आप भी करें. हम अवश्य सफल होंगे इसी आशा के साथ फिर मिलेंगे. धन्यवाद.
मनोज चारण.

Monday, March 7, 2011

आखिर अध्यापक पात्रता परीक्षा का क्या मतलब है !

भारत सरकार आखिर क्या चाहती है इस देश के बेरोजगारों के साथ. पहले पीटीईटी
दो, फिर बी.एड. की परीक्षा, फिर प्रतियोगी परीक्षा देनी पड़ती है तब मिलती है
अध्यापक की नोकरी.
आखिर सरकार बेरोजगारों के खिलाफ हाथ धो कर ही नहीं बल्कि नहा धो कर
पड़ी है. मेरे समझ में नहीं आता की सारे कानून इस देश में गरीबों के लिए,
बेरोजगारों के लिए, कर्मचारियों के लिए ही क्यों बनते है. मेरे तो ये समझ में
नहीं आता कि, आखिर हम भारत में पैदा हो गए ये ही हमारी गलती है क्या ?
इस देश के नेताओं को ये बात समझ में क्यूँ नहीं आती है कि यदि यहाँ का
नोजवान मिश्र की तरह खड़ा हो गया तो फिर छुपने को जगह नहीं बचेगी.
प्रधानमंत्री को सायद समझ में ही नहीं आ रहा है कि, देश के युवा  के साथ
उनकी सरकार कितना अत्याचार कर रही है.
संभल जाओ मनजी वरना,
"रहिमन हाय गरीब की, कबहूँ न निर्फल जाय.
मरे बैल की चाम से लोह भस्म हो जाय"
संभल जाओ मेरे देश के हुक्मरानों वरना तुम्हे ये हाय ले बैठेगी.
मनोज चारण.