जय श्रीअम्बे  !
         हाईकोर्ट ने आखिर टेट पर रोक लगा ही दी, फिर सरकार ने क्या सोच के इस परीक्षा के लिए फार्म भरवाए थे | आखिर विद्यार्थियों से ६०० रूपये फार्म के, १०० रूपये ऑनलाइन के, और लगभग १००० रूपये अतिरिक्त खर्च होने के बाद विद्यार्थियों के हाथ आया है तो बस अफ़सोस, कि अब क्या करेंगे ? 
            सरकार के पास न तो कोई विजन है, और न ही कोई सोच, आखिर क्या चाहती है, ये सरकार | हमारे तो एक बात समझ में आठ है जो कभी बीकानेर के कवी ए.वी.कमल ने कही थी, 
  "हमने पूछा मंत्रीजी से, कि आप  हर साल घाटे का बजट बताते हो, 
   तो फिर ये सरकार कैसे चलाते हो | 
  मंत्रीजी बोले, कि कोम्पेटटिव एक्सामीनेसन खूब करते है, 
  १० कि जगह १०० को बुलाते है, इस प्रकार,
  बेरोजगारों से रोजगार कमाते है, और धड्ले से सरकार चलाते है | 
          तो बात तो ये है, कि गहलोत सरकार तो बेरोजगारों से ही अपनी दाल रोटी चलाना चाहती है, तभी तो बजट में कहा था कि दाल रोटी खाओ हरी के गुण गाओ | पर गहलोत को पता नहीं कि मरे बैल कि चाम से लोह भस्म हो जाता है और आज का बेरोजगार किसी मरे बैल से कम नहीं है, जिसकी कमर झुकी हुई है, चेहरे पर मुर्दनी छाई  है, और हालत लंगड़े आम कि तरह हो गयी  है, जिसे जब देखो सब चूसने में और निचोने में लगे है | लेकिन आखिर कब तक निचोड़ोगे इसे कभी तो इसमें से कठोर गुठली निकल ही आएगी और जिस दीन गुठली निकली उस दिन न तो 
                                           "तख़्त रहेगा और न ताज रहेगा | "
शेष कुशल. 
मनोज चारण.
 
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