Monday, June 6, 2011

क्या आजादी यही होती है ?

 जय श्रीअम्बे !
                   
                      मेरे मन में पिछले कुछ दिनों से एक सवाल  बार-बार उठता रहा है, कि क्या सच में हम लोग आजाद भारत में जी रहे है ? क्या सच में भगतसिंह, आजाद और गाँधी ने इसी आजादी के सपने देखे थे ? क्या हमारे क्रांतिकारी सही नहीं थे जो सोचते थे कि गोरे साहब तो चले जायेंगे पर उनकी जगह भूरे और काले साहब आ जायेंगे पर नीतिया वही रहेगी | 
              जब मै इन सभी बातो पर ध्यान देता हूँ तो उलझन होती है कि क्यों मै इस देश में पैदा हो गया ? कम से कम किसी पाकिस्तान जैसे देश में पैदा होता तो ये तो कह सकता था कि मेरे देश का ये ही धर्म है | पर नहीं हम तो चोर की वो माँ है जो घड़े में मुह छुपा के रोटी है | 
               कल जो देश में हुआ और आगे जो होने वाला है, उसके लिए और कोई नहीं बल्कि पिछले ६० वर्षो से देश को जोंक की तरह चूस रही कांग्रेस जिमेदार है | एक बाहर से आई हुई ओरत को यहाँ के लोगो से क्या प्यार हो सकेगा ? क्या महमूद गजनी को हुआ था ? क्या चंगेज खान को हुआ था ? क्या सिकन्दर को हुआ था ? क्या मोहम्मद कासिम को हुआ था ? नहीं तो फिर इटली से स्नेह की उम्मीद रखना बेमानी है | 
              बाबा रामदेव ने क्या गलत कहा है, की इस देश का धन देश में आना चाहिए, क्यों नहीं उन लोगो के नाम खोले जाते जिनके खाते विदेशों में है ? क्या नाम खोलने से डर लगता है,  कि कहीं अपना ही नाम ना खुल जाये ? सायद यही बात है, तभी तो सब डर रहे है नाम लेने में नाम बताने में | 
               जहाँ तक बात राजनीती कि है, तो मुझे लालू और दिग्विजय से ये पूछना है कि क्या उनको भगवान ने राजनीती के लिए अपना दूत बना कर भेजा था जो अब बाबा को नसीहत देने लगे है ? अरे जिनको रोटी और गाय के चारे में अंतर मालूम नहीं वो इस देश कि जनता के सामने नसीहत देने लगे है | पर ये सच है कि जब जंगल  में सिंह नहीं होता है तो गीदड़ो को कबड्डी खेले का और उधम मचाने का मोका मिल जाता है | लालू को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि जनता ने उसे धरती  पर तो ला दिया है अब रसातल में भेजने कि तयारी है | और दिग्विजय किस मुह से बोलते है, उन्हें पता ही नहीं कि स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि "जिस व्यक्ति ने गेरुआ धारण कर लिया हो और जो मांग के खता है, दुनिया को उसका आदर करना चाहिए|" पर नहीं दिग्गी के लिए तो एक आतंकवादी ओसमा तो ओसमाजी हो जाते है और एक सन्यासी ठग | आखिर व्यक्ति का चरित्र उसकी भाषा से ही तो नजर आता है और भाषा व्यक्ति के संस्कार पर निर्भर करती है, सायद दिग्गी को अच्छे संस्कार नहीं मिले है | 
                 सब बाबा से सवाल पूछते है कि उनके पास ११०० करोड़ कि सम्पति कहाँ से आई ? एक उद्धरण देता हूँ मेरे शहर में जब बाबा आये थे तब मै भी उनके साथ था, उस दिन के योग शिविर में मेरे शहर में दो आदमी पतंजली योगपीठ के संस्थापक सदस्य बने थे, और उसकी फीस थी ५००००० रुपए | बाबा ने वो ५००००० रुपए कहीं पर किसी सट्टे में नहीं लगाये, ना ही किसी रंडी को नचाने में लगाये, ना ही हवाला से विदेश भिजवाए, बल्कि उन्होंने तो इस पैसे से देश को एक विश्वस्तरीय विश्वविध्यालय दिया है | ये है बाबा के ११०० करोड़ का सच जो इस देश के आम जन को भी पता है |
                 पर क्या लोगो को पता है कि देश में ए.राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी ने जो पैसे खाए है, वो कहाँ पर है ? क्या लोगों को पता है कि उन्होंने वो पैसे किस बैंक में और किसके खाते में डाले है ? क्या ये लोग किसी अंतररास्ट्रीय गिरोह के सदस्य बन गए है ? क्या ये किसी आंतकवादी संगठन के लिए तो काम नहीं कर रहे है ? इन सब बातो पर भी सवाल उठने चाहिए और मैंने उठाये है |
                 क्या दिग्गी राजा को और लालू को पता है कि कस्साब पर आज तक इस देश का कितना पैसा खर्च हो चुका है ? क्या पता है कि अफजल गुरु पर कितने रुपए खर्च हो गए है ? इन पागल कुत्तों को सरकार ने क्यों पाल रखा है, माफ़ करना पर कल कोई विमान अपहरण हो गया तो ? कल फिर कोई मुफ्ती को उठा ले गया तो? कल यदि कोई राहुल पर हाथ डाल बैठा तो ? कल को सचिन या रोबर्ट वाड्रा का अपहरण कर लिया तो ? फिर सरकार क्या करेगी इनका ? निश्चय ही इनको छोड़ना पड़ेगा | फिर ये रिस्क क्यों उठाया जा रहा है ? 
                 मेरे सवालों का सिर्फ इतना ही मतलब है कि, बाबा रामदेव ने सविधान में दिए गए आजादी के हक़ पर आवाज उठाई है और इस आवाज को इस तरह से दबाना और कुचलना हमारी आजादी के साथ धोखा है | सायद आज गाँधी होते तो उन्हें भी इसी प्रकार  जिल्लत झेलनी पड़ती | 
                 "बर्बाद-ए-गुलिस्तां  करने को तो एक ही उल्लू काफी था |
             हर साख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा ||

शेष कुशल 
मनोज चारण. 

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