अर्थात गुरु
के उपदेश
एवं शास्त्रों से जड़बुद्धि
भी साधारण काव्य रच सकता
है, किन्तु श्रेष्ठ
काव्य तो प्रतिभा द्वारा ही सृजित होता है।
जब आचार्य
भामह ने ये कहा होगा तब उनकी मनःदशा क्या रही होगी, क्या उनके मन में प्रतिभा की छवि बनी होगी, क्या उनके सामने किसी वाल्मीकि, किसी व्यास या किसी
कालीदास का चित्र था, या फिर भामह ने यूं ही प्रलाप कर दिया था।
निःसंदेह भामह के सामने कोई तो परिकल्पना जरूर थी जो उन्हें समझा रही थी, बता रही थी कि, प्रतिभा का कोई सानी नहीं होता, प्रतिभा का कोई जबाब नहीं होता। हम इतिहास में अनेक उदाहरण देख सकते है। वाल्मीक, कालीदास के उदाहरण तो जग जाहीर
हैं ही, लेकिन हम देख सकते है कि हमे इतिहास बताता है कि, किस प्रकार एक साधारण सा दिखने वाला लड़का चंडीगढ़ में अचानक किसी खिलाड़ी के
स्थानापन्न के रूप में उतरता है और विश्व क्रिकेट में पहले हरफनमौला के रूप में ही
अपनी काबिलियत नहीं दिखाई बल्कि भारत को पहला विश्वकप भी दिलवाया। इसी प्रकार हम ओशो
का उदाहरण दे सकते है, मुगल शासक अकबर को भी हम इसी में शामिल
कर सकते है।
तो भामह ने
बिलकुल सही कहा है कि, प्रतिभा का कोई मोल नहीं होता, अभ्यास से एकलव्य और
अश्वथामा बना जा सकता है लेकिन अर्जुन और कर्ण सिर्फ पैदा ही हो सकते है। अर्नोल्ड
स्वर्ज्नेगर बना जा सकता है, लेकिन चार्ली चैपलिन पैदा ही होते
है, ध्यानचंद, मोहम्मद अली, लारा, सचिन, दारासिंह, मोहम्मद रफी, किशोर सिर्फ पैदा ही हो सकते है।
अतः यदि पहली
बार आपके मन में कोई पंक्ति आ रही है तो आप समझे कि आप पर ईश्वर कि मेहर हो रही है, आपको वो अपनी प्रतिभा से आलोकित
करना चाहता है। बस उस पंक्ति को अपनी तरफ से सँवारने कि कोशिस न करें उसके साथ बहें और बहने दे कविता
की धारा को, और वास्तव
में आपको प्रतिभा मिली है तो निःसंदेह आप एक कवि बन कर ही रहेंगे।
शेष फिर कभी
......................................।
मनोज चारण
(गाडण) “कुमार”
रतनगढ़ (चूरु)
बहुत सुंदर
ReplyDeletethanks didi
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमनोज सा काव्य हेतुओं में प्रतिभा सर्वश्रेष्ठ है और रहेगी भी।। अभ्यास और समाधि से जैसा आपने कहा एकलब्य बना जा सकता है कर्ण नहीं। नीरज ने ठीक ही कहा है मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।
ReplyDeletethanks raam bhaai
DeleteVery Nice Blog
ReplyDeleteNapsa Aapka bahut aabhaar.
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