Sunday, March 20, 2016


नमस्कार !

    कल 23 मार्च है, इस देश के महान सपूतों भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का शहीदी दिवस। मन में अजब सी उदासी है, अजब सी खलिस है, कि क्यों वो लोग चढ़ गए थे फांसी पर इस देश के लिए। यदि हम गौर करेंगे तो हमे पता चलेगा कि, इस देश के लिए जान देने वाले अधिकांश क्रांतिकारी बीस से सत्ताईस वर्ष कि आयुवर्ग के थे। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक़उल्ला, प्रतापसिंघ, खुदीराम बोस ये सब तो पच्चीस वर्ष के भी नहीं हुए थे, यानी कि ये लोग तो भारतीय आश्रम व्यवस्था के अनुसार तो अपने ब्रह्मचर्य कि उम्र तक भी पार न कर सके थे, ऐसे में इनको सोच कैसे बन पायी होगी क्रांति की राह पर चलने की, कैसे इन लोगों ने समझाया होगा अपने-आप को कि, जबकी उनकी उम्र किसी के काले केशों में उलझने की थी उस उम्र में वो अदालतों के केशो में उलझ गए। जब उनकी उम्र थी दुनिया कि रंगीनीयों में खोने की उस वक्त वे काल-कोठरियों के अंधेरों से टकरा रहे थे। क्या था उनके मन में, क्या थी उनकी जिजीविषा?
       समझ में नहीं आता ना, कैसे आएगा समझ में जब तक हम अपने-आप को उस स्थान पर नहीं रखेंगे, कैसे समझ में आएगा जब तक कि हम खुद से ही सवाल नहीं करेंगे कि, हमने इस देश में जन्म क्यूँ लिया है? नहीं समझ में आएगा तब तक जब तक हम यही सोचेंगे कि, कोई भऊँ नृप, हमऊँ का हानि।
    हमे समझना पड़ेगा कि, आज के दौर के तथाकथित क्रांतिकारी जो अपने आपको भगतसिंह का उत्तराधिकारी मानते है और कहते हैं, वो भगतसिंह के चरणों की मिट्टी की हौड़ नहीं कर सकते।
    एक अजीम-ओ-शान क्रांतिकारी समूह के श्रीचरणों में मैं वंदन करता हूँ, और अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ कि, हे महानायकों मैं इसलिए आजाद भारत में सांस ले पा रहा हूँ कि, आपने इसके लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिये थे। मैं शुक्रिया अदा करता हूँ आप सब शहीदों का, और अपने दौर के देश-विरोधी बाते करने वालों की करतूतों पर मैं शर्मिन्दा भी हूँ।
             शेष फिर कभी ...........................। 

मनोज चारण (गाडण) कुमार
रतनगढ़ (चूरु) राज.
मो. 9414582964

No comments:

Post a Comment