सादर जै श्री अम्बे !
मेरा देश जो कभी कृषि प्रधान देश कहलाता था, मेरा देश जो जतियों और सतियों का देश
कहलाता था, मेरा देश जहां पर
किसान हल जोतता था तो सीता जन्म लेती थी, मेरा देश जिसमे भगवान भी गोपाल बन कर पैदा हुए, मेरा देश जिसने किसान के बेटों को देश
के सर्वोच्च पदों पर बैठाया, मेरे उस देश के एक
मजबूर बेटियों के बाप को, मजबूर माँ के बेटे
को, मजबूर गृहणी के मजबूर पति को और मजबूर
देश के मजबूर किसान को जब देश की राजधानी में संसद के ठीक पास में आत्महत्या के
लिए फांसी खानी पड़े तो आँखों में आँसू नहीं आते बल्कि अंगारे बरसने लगते है। इस
घटना पर कोई भी कुछ नहीं बोले, सब अपनी-अपनी ढपली पर अपनी राग आलाप रहे है ऐसे
में ना तो मुझे नायिका के केश सुहाते है और ना ही कोई हास्य रस की फूहार ही अच्छी
लगती है। इस देश की नपुंसक सरकार के खिलाफ सिर्फ आक्रोश ही आक्रोश छलक़ता है।
राजस्थान के एक किसान ने देश को आईना दिखा दिया है, उस दिलेर ने अपने गाँव-ढाणी में अपनी इहलीला खतम
नहीं की बल्कि छाती पीट-पीट कर अपने को किसान हितैषी बताने वालों के गढ़ ने जाकर
राजस्थानी जौहर, तागा, केसरिया की परंपरा का
निर्वहन किया है, मैं नमन करता हूँ उस
हुतात्मा को जिसने इन नीचों को नंगा किया है। उस वीर की शहादत पर मेरी चंद पंक्तियां समर्पित करता हूं -
देश का जनाज़ा है ये कैसा है तमाशा जाने,
देश का किसान आत्महत्या पे उतारू है।
कैसी है समस्या जाने अन्नदाता परेशान,
देश की सरकार भी अब हो गई बीमारू है।
खो गये है गांधी बाबा, खो गए है शास्त्री भी,
खो गए पटेल सरीखे किसान रखवारु है।
अब तो बचा है देश में केवल बाजार देखो,
और बचे है वो सारे नेता जो बाजारू है।१।
राजधानी मौन है और जनता में है खौफ भारी,
देश की जनता ने देखो उंगली उठाई है।
देश की गद्दी पर बैठे सारे भांड एक जैसे,
सारे के ही सारे खाते रबड़ी मलाई है।
नेताओ के साथ देखो मिल गया आसमां भी,
जिसने बारिस के संग कहर बरसाई है।
अब तो सुनो तुम कान्ह कन्हाई मेरे,
नहीं जो सुनोगे तो ये तेरी जग हँसाई है।२।
हत्या के दोषी है सारे देश की जो सरकारे,
देश के किसान की ना कोई सुनवाई है।
कोई पैर पकड़ाता, कोई करता है बाते,
किसी के भी देखो मन दया नहीं आई है।
सब करते है देखो झूठी ये लफ्फाजी अब,
किसी की भी आँख जरा सरम न हयाई है।
लूट-लूट खा गए जो देश को वो जाने कैसे,
कर रहे है देखो इस देश की रहनुमाई है।३।
अब तो संभल जाओ छप्पन इंची छाती वालों,
आने लगी अब सबके सामने सच्चाई है।
बंद करो प्रलाप और झूठी बाते सारी,
मान जाओ गलती इसी में ही भलाई है।
कर रहे आत्महत्या देश में किसान देखो,
जग मे ये तूने कैसी छवि अब बनाई है।
छप्पन इंची छाती वालों देश की गद्दी को छोड़ो,
देश की जनता में अब यही मांग छाई है।४।
- मनोज चारण (गाडण) ''कुमार'' कृत
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