Thursday, November 11, 2021

 

आउवा

 

मैं जब भी अपने इतिहासों से मौन खड़ा बतलाता हूँ,

परम्पराओं से परिपूरित नूतन उत्तर पाता हूँ,

मेरी कविता गा उठती है, गौरवगान इतिहासों का,

आउवा के अगनकुंड में जलती जिंदा सांसो का,

मैं करता हूँ गान हमेशा, सूरज की उगती किरणों का,

करता हूँ आव्हान हमेशा, अंधियारों से लड़ने का,

संस्कार का सूरज जब भी, अंधियारों में घिरता है,

राह दिखाने हरदम चारण, हवनकुंड में जलता है।।

 

जब शंकर का मान घटा था, सती अगन में कूद पड़ी,

तब निज माता के हित, चारण सेना टूट पड़ी,

यज्ञकुंड के यौद्धाओं से, समरांगण में जूझ गए,

माँ की ममता के हित हम, जलती ज्वाला से उलझ गए,

जब भारी लपटों में घिरती, सोने की लंका देखी,

धीर वीर बजरंगी मन में, कातरता बढ़ते देखी,

तब हमने धीर बंधाया उनको, राम काज को सिद्ध किया,

काज किया हमने भी वो, काम शुरू जो गिद्ध किया।।

 

पांडू के परिवार ने भी, जब कुंवरों को अस्वीकार किया,

हमने साख भरी तब उनकी, कुरुकुल ने स्वीकार किया,

हमने बप्पा रावल को, गढ़ चितौड़ में साथ दिया,

एक अकेले बप्पा के, हाथों को थामा हाथ दिया,

हमने भाटी वंश बचाया, रतनु बनके ढाल बने,

भाटी कुल के दीपक के, जब सारे दुश्मन काल बने,

हमने नींव लगाई गढ़ की, जोधा ने जब मांग करी,

गढ़ बीकाणा थरपा हमने, माँ करणी ने साख भरी।।

 

हमने मान बढ़ाया हरदम, लेकिन पीठ कटार मिली,

मोटा राजा ने घात करी, कविकुल को क्षार मिली,

आउवा की धरती पर आकर, शंकर के गण खूब अड़े,

धन्य वीर चाम्पावत थे, अरिदल से खूब लड़े,

जय जगदम्बा कह कर सबने, खुद को अगन में होम दिया,

निर्लज्ज नीच मोटा राजा ने, परम्परा को होम दिया,

लपलपाती अग्नि ज्वाल ने, कवियों का सम्मान किया,

अड़े, लड़े और मरे वहां जो, उनका गौरव गान किया।।

 

आउवा की उठती लपटों की, अब भी तपन अधूरी है,

क्या थे हम, क्या करते थे, ये गुणगान जरूरी है,

मैं भरता हुंकार हमेशा, निजकुल गौरव भान रहे,

याद रहे अपने वो पूर्वज, जाति का सम्मान रहे,

खुद को करो बुलन्द हमेशा, सिंहों की संतान बनो,

सच के लिए लड़ो हमेशा, सच का ही गुणगान करो,

चुभे जो खंजर भूल न जाना, इतिहासों की भूलों को,

कविकुल की छाती में चुभती, याद रखना शूलों को।।

 

जिन्होंने बलिदान दिया, निज धर्म को पाला था,

आज हम जो भी खाते, वो उनका एक निवाला था,

उठो जगाओ खुद की शक्ति को, माँ शक्ति सहाय करे,

उन वीर शहीदों के वंदन में, कवि कलम उठाय रहे,

करता हूँ मैं वंदन उनको, जिनसे जिंदा जाति है,

आउवा है तीरथ अपना, कुल की गौरव थाती है।।

 

- मनोज चारण "कुमार"

 जैतासर (रतनगढ़) चूरू

 

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