हम हमारे ईमान पर यदि सही है, यदि हम हमारे काम पर सही है, हम हमारे नाम पर यदि सही है, यदि हम सभी जगह सही है और निर्दोष है, तो फिर हम क्यों किसी के सामने झुकें?
झुकना जीवन की निसानी है, पर ज्यादा झुकना कमजोरी की निसानी है, और अधिक झुकने से रीढ़ भी टेढ़ी हो जाती है, इसलिए झुकना उतना ही ठीक है, जितने से आपकी विनम्रता झलक सके न की आपकी कमजोरी .
झुकने में कोई बुराई नहीं है, पर लोगों को हमारी विनम्रता में कभी-कभी हमारी कमजोरी नजर आती है, जरूरी नहीं होता हमेसा ही झुकने वाला कभी कोई वार नहीं कर सकता या कभी आपके विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता. पर जो ये सोचता है, वो गलत समझता है, पता नही क्या ? कि, अधिक दबाने पर बेंत ज्यादा अधिक चोट करती है, जब बेंत जैसी निर्जीव चीज भी पलटवार कर सकती है तो फिर हम तो हाड-मांस के इन्सान है, जिनमे वो सारी ताकत भगवान ने दी है जो उसने किसी दूसरे को भी दी है.
इसलिए हर किसी को सोचना चाहिए जब तक अगला झुक रहा इसका मतलब ये नहीं कि, झुकने वाला कभी खड़ा नहीं होगा, जिस दिन खड़ा हो गया उस दिन बचाने वाला नहीं होगा.
शेष कुशल.
मनोज चारण.
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